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पञ्चरकाण नाष्य अर्थसहित. २७ हवे विगइ, नीवि तथा आयंबिलना
आगार कहे . अन्न सह लेवा गिह, नस्कित पमुच पारि मह सवे॥ विगइ निविगए नव, प मुच्च विणु अंबिले अ॥२०॥
अर्थः-एक (अन्न के) अन्नवणानोगेणं, बीजो (सह के) सहस्सागारेणं, त्रीजो (लेवा के०) लेवालेवेणं, चोयो (गिह के ) गिहन सं सणं, पांचमो (नरिकत्त के) नस्कित्तविवेगेणं, उभे (पमुच्च के) पमुन्नमस्किएणं, सातमो (पा रिके) पारिठावणियागारेणं, आठमो (मह के.) महत्तरागारेणं नवमो (सवे के) सवस माहिवत्तियागारेणं, ए (नव के) नव आगार ते (विगइ के) विगइ तथा (निविगए के) निविगइ मली बे पञ्चरकाणने विषे जासवा, त था ए नवमा हेथी एक (पमुच्चविणु के) पमु चमस्किएणं ए आगार विना शेष (अ के) पाठ आगार जे विग अने नीविना कह्या तेज