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________________ २० पञ्चरकाण नाष्य अर्थसहित. (अंबिले के ) आयंबिलना पञ्चरुखाणने विषे जाणवा. जिहां आम्ल एटले खाटो चोथो रस तेहथी निवर्तवं ते आयंबिल कहीयें, तेना त्रण प्रकार , एक नदन, बीजो कुटमाष, त्रीजो सा थुआदिक एत्रण नेदे . अथवा (आचाम्ल के) नसामणनी पेरें जिहां अन्नादिक नीरस थइ नि कले तेने आयंबिल कहीयें ॥२०॥ हवे नपवासना आगार कहे . अन्न सह पारि मह सब, पंच खवणे उपाणि लेवाई॥ चन चरिमंगुवाइ, नि ग्गहि अन्न सह मह सच्चे ॥२१॥ . अर्थः-एक (अन्न के) अन्नपानोगणं, वी जो (सह के०) सहस्लागारेणं, त्रीजो (पारि के) पारिठावणियागारे, चोथो (मह के) महत्तरागारेणं, पांचमो (सब के) लबसमाहि वत्तियागारेणं, ए (पंच के) कांच आगार (ख वणे के ) उपवासना पच्चस्काराने दिले जाणवा. तथा एमां अचित्त पाणी पीये माटे (पाणि के.) पाणस्सना पच्चरकाणले विषे लेवेशवा अलेवेण
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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