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________________ श्श्६ पञ्चरकाण नाष्य अर्थसहित. न, सग गठाणे अनट विणा ॥१॥ ___ अर्थः-एक (अन्न के) अन्नबणानोगेणं, बीजो (सहस्सा के) सहस्सागारेणं, त्रीजो (सागारिय के ) सागारियागारेणं, चोथो (आ नंटण के) आनदृणपसारेणं, पांचमो (गुरुप के०) गुरुअनुगणेणं, हो (पारि के० ) पारिता वणियागारेणं, सातमो (मह के) महत्तरामा रेणं, आठमो, (सब के ) सब समाहिवत्तिया गारेणं, ए (अन्न के) आठ आगार ते (एग बिआसणि के०) एकासण अने बियासणना पच्च ख्खागने विषे जाणवा. तथा एज आठमांयी ए क (अनटविणा के) आनणपसारेणं ए आगार विना शेष एकासणाने विषे जे कद्या ने तेज (स ग के०) सात श्रागार ते (इगठाणे के ) एकल ठाणाना पच्चरस्काराने विषे होय ॥ १७ ॥ जिहां जमणा हाथे जमे, मात्र कोलीया लेवानेज हाथ फेरवे, परंतु अंगोपांगने तो खरज खणवादिकने कामे पण हलावे नही ते एकलगणुं जाणवू १५
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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