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२६ पञ्चस्काण नाष्य अर्थसहित. ए पांचस्थानक मां हेला प्रथमादि स्थानकना
पृथक् पृथक् नेद कहे . . नमु पोरिसीसमा, पुरिमवम् अंगुष्ठ माइ अम तेर ॥ निवि विगइ अंबिल ति य, तिय उगासण एगठाणाई ॥७॥
अर्थः-प्रथम स्थानकें तेर नेदनां नाम कहे ३. एक (नमु के) नमुक्कारसी, बीजुं (पोरिसी के) पोरिति, त्रीजो (समा के ) साईपोरि सि ते दोढ पहोर पर्यंत, चोथो (पुरिम के) पुरिममृते बे पहोर, पांचमो (अव के) अवम् ते त्रण पहोरनुं पच्चरकाण.ए पांचनी साथे पूर्वोक्त (अंगुष्मा के०) अंगुष्ट सहितादिक (अम के) आठ नेद मेलवीये तेवारे (तेर के) तेर नेद थाय. तथा बीजा स्थानके एक (निवि के.) निवी, बीजो (विगइ के) विगइ अने त्रीजो (अंबिल के) आयंबिल ए (तिय के) त्रण पच्चरकाण जाणवां, तथा जीजा स्थानकने विषे एक (5 के ) बेआसगुं, बीजुं (इगासण के)