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पञ्चरकाण नाष्य अर्थसहित. श् एकासगुं अने त्रीजुं (एगगणाई के०) एकल गणादिक ए (तिय के) त्रण पच्चरकाण जाणवां.. हवे वली प्रकारांतरें उपवासादिक विधियें
उपवासने दिवसें पांच स्थानक केवी __रीतें करवां ? ते कहे .
पढमंमि चनबाई, तेरस बीयंमि तइय पाणस्स ॥ देसवगासं तुरिए, चरिमे जह संनवं नेयं ॥७॥
अर्थः-(पटमंमि के ) पहेले स्थानकें (चन बाई के०) चोयादिक एटले एक नपवासथी मां मोने चोथ छ इत्यादि यावत् चोत्रोश नक्त प यंत पच्चरकाण करवां, तथा (बीयंमि के) बीजा स्थानकने विषे नोकारसी पोरिसी, सामोरिसी, पुरिमट्ट, अव अने गंठसहियं, मुख्ताहियं, अंगु
सहियं, घरसहियं, प्रस्वेदसहियं, श्वासोचासस हियं, जलविंऽसहियं, दीपसहियं, ए (तेरस के) तेर पच्च रकाण मां हेलु हरकोपच्चरकाण करवं, तथा (तश्य के) त्रीजा स्थानकने विषे (पा