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पञ्चस्काण नाष्य अर्थसहित. २०५ हवे तेहीज नच्चारनो विशेष विधि कहे . पढमे ठाणे तेरस, बीए तिन्निन तिगाइ तर अंमि।पाणस्स चमि, देसवगासाइ पंचमए ॥६॥ ___ अर्थः-इवे एनां पांच स्थानक ने तेमां (प ढमेगणे के०) प्रथम स्थानकने विषे कालपञ्च ख्खाणरूप नोकारसी प्रमुख (तेरस के०) तेर पञ्चरुखाण जाणवां, तेनां नाम आगली गाथायें कहेशे, तथा (बीए के) बीजा स्थानकने विषे विगइ, नीवी अने आयंबिल ए (तिनिन के०) ऋण पञ्चख्खाण जाणवां. तथा (तइमि के०) त्रीजा स्थानकने विषे (तिगार के) त्रिकादिक एटले एकासण, बीयासण ने एकलगणादिक, ए त्रण पच्चख्खाण जाणवां, तथा (चनमि के) चोथा स्थानकने विषे (पाणस्स के) पाणस्स ले वेण वा अलेवेण वा इत्यादि अचित्त पाणीनां आगार जाणवां, तथा (पंचमए के) पांचमा स्थानकने तिषे (देसवगासा के०) देशावकाशि कादि पच्चरुखारा करवा जागवां ॥६॥