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गुरुवंदन जाप्य अर्थसहित. १०७ पहेलुं फेटा वंदन जाणवू. तथा (पुस्मखमास मणऽगि के० ) पूर्व पंचांग बे खमासमणा देवे करीने एटले बे हाथ, बे गोठण अने एक मस्तक ए पांच अंग नमाववा रूप ते (बीयं के) बोनुं थोनवंदन जाणवू ॥१॥
इहां शिष्य पूजे जे के थोनवंदने तथा हाद शावर्त वंदने प्रथम एक वार वांदीने फरी बीजी वार शे हेतुयें वांदीयें बैयें ? त्यां प्राचार्य उत्त र आपे .
जह दून रायाणं, नमिदं कऊं निवेश नं पहा॥ वीस जिनवि वंदिन, गन्नए मेव इन्च उगं ॥२॥
अर्थः-(जहदून के) जेम दूत पुरुष ने ते (रायाणं के ) राजाने. (नमिनं के) नमिने (कऊनिवेनं के) कार्य निवेदन करे वली (प हा के) पागे राजायें (वीलझिनवि के०)वि संज्यों थको पण (वंदित्र के०) वांदीने (गड के) जाय (एमेव के०) एनी पेरें (श्व के)