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१०७ गुरुवंदन नाष्य अर्थसहित.
हां गुरुवंदनने विषे पण वंदन- (उगं के) धिक जाणवू ॥२॥ अने हादशावर्त वंदने तो बेहु वांदणे मलीने आवश्यक आवर्तादि बोल नीपने , ते माटे बेहु वांदणानी जोमीये एकज वंदन कहेवाय ॥ दवे वांदणां देवानुं कारण शुं ? ते कहे .
आयरस्सन मूलं, विण सो गुणवत अपमिवत्ती॥ सा य विहि वंदणात, वि ही श्मो बारसावत्ते ॥३॥
अर्थः-जे माटे श्रीसर्वप्रणीत जे (आयर स्स के ) आचार तेनो (न के) बली (मूलं के) मूल जे , ते (विन के) विनय डे (सो के) ते विनय केवी रीते होय ? ते कहे
. (गुणवन के) गुणवंत गुरुनी (अ के०) वली (पमिवत्ती के०) प्रतिपत्ति एटले सेवा क रवी जाणवी (साके) ते नक्ति (च के) वली (विहिवंदणान के) विधियें करीने वांद वाषकि थाय ते (विही के०) विधि (श्मो केए)