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________________ २५२ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । - VA गुन पर्याय न्यारा ईका प्रदेश न्यारा म्हारा प्रदेश न्यारा ईका स्वभाव न्यारा हमारा स्वभाव न्यारा और कोई ऐसे कहे पुद्गल दव्यसों तो वारंवार भिन्नपनो भयो पन अवशेष चार द्रव्यासों अथवा परजीव द्रव्यसों तो भिन्नपनो भयो नाहीं । ताका. उत्तर ऐ हे वे चार द्रव्य तो अनादि कालसे ठिकाना बांध अडोल तिष्टे हैं। पर जीवांका संयोग प्रत न्यारा है । सो भिन्न होय तासों कांई भिन्न कहिये एक पुद्गल द्रव्य ही का उरझाव है । तात याही कू भिन्न करना उचित है। घना विकल्प कर काई जानवावाला थोड़ा हीमें जानें । अरु न जानवावाला घनीमें भो न जाने तातें यह बात सिद्ध भई यह बात कला कर साध्य है । बलकर साध नाहीं। बहुरि यह आत्मा शरीरमें बसता इंद्रियोंके द्वार अरु मनके द्वार कैसे जाने । सोई कहिये है जैसे एक राजाळू काहू बलवान वैरीने बड़ा महलमांहि बंदीखाने दिया सो उस महलमें पांच तो झरोखा है । अरु एक बीचमें सिंहासन हैं । सो कैसे है झरोखा अरु सिंहासन सो ऊ झरोखाके ऐसी शक्तिने लिया चसमा लगा है । अरु ऐसी सक्तने लियां सिंहासनके रतन लागा है सो कहिये है । सो राजा अनुक्रम सो सिंहासन पर बैठो हुवो झरोखा ओर देखतो हूवो सो प्रथम झरोखामांहिं देखता तो सपरसके आठ गुनने लियां पदार्थ दीसे है । अरु सेस पदार्थ दीसें नाहीं। बहुरि दूना झरोखा मांहि निरखो सिंहासन ऊपर बैठ तब पांच जातके रस दीसे हैं । अवशेष और कछू न दीसा बहुरि सिंघासन ऊपर बैठ तीजा झरोखा माह देखो तब गंध जातके दोय पदार्थ देखे शेष देख्या नाहीं । बहुरि चौथा झरोखामाहिं देखा
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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