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________________ २१२ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । जोर सीस नमाय तीन नमस्कार करे हैं। पीछे देवकी आज्ञा पाइ सेज्या ऊपर जाय तिष्टे है । पीछे देव कभी गोद पर धोर हस्तादिक सपर्से वा नृत्य करने आज्ञा करे पीछे देव देवांगना अनेक प्रकारके शरीर बनाय व नृत्य करे वा गांन करें तामें ऐसा भाव ल्या हे प्रभो हे नाथ मैं कामवान कर दग्ध हूं ताकू भोगदान. कर सांत करो आप म्हांके कामदाह मेटवेकू मेघ साढस्य हौ । बहुरि कभी वे देवका गुनानुवाद गावें हैं। कभी कटाक्ष कर जानी रहे है । कभी आइ एकठी होय कभी याइ तले लोटै जाय कभी बुलाय बुलाय भी न आवे सो पहर आंका मायाचार जात स्वभाव ही है। मनमें तो अत्यंत बाह्य अरु वाहू अचाह दिखावे बहुरि कभी नृत्य करती धरतीमें झुक जाइ है। आकाशमें उठ जाय वा चकफेरी देइ वा भूम ऊपर पगांकू अति शीघ्र चलावे व कभी देव दिसाप्रति हेरे । वा तली दृष्टि देखे देवांगना वस्त्र कर मुख आछादित कर देय वा उघाड़ देय जैसे चन्द्रमा वादल कर आछादित होय कभी वादल सो रहित दिखाई देय बहुरि कभी देव देवांगना ऊपर उछाले सो वे भयकर भाग जाइ पीछे अनुराग कर देवके शरीरसू आय लिपटे फेर दूर जाय है कभी इन्द्र सहित देवांगना मिल चकफेरी देय कभी ताल मृदंग वीन बजाय देवकू रिजावे कभी सेजपर लोट जाय कभी उठ भागे पीछे आकासमें नृत्य करे । मानू आकासमें विजुली चमके अथवा आकाशमें तारान सहित चन्द्रमा सोभे है । अथवा चन्द्रमा साथ चन्द्रकला गमन करती सोभे । तैसें देवके साथ देवांगना मिल कौतूहल करे बहुरि देवांगना नृत्य करती थकी पावन भूमि ऊपर वा आकासमें नेवर आदि पगनके अनुराग का जाय है - रिजावे कसी करी देय
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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