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________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । २१३ गहने ताके झनकार सहित चलावे है सो कहिये है। झिम झिम झिन झिन छिन छिन तिन तिन आदि शब्दनके समूह अनेक रागने लियां गातके गहनेनके शब्द होय मानूं देवकी स्तुति करें हैं । पीछे कोमल सेजपर देवका आलिंगन करें सो परस्पर देवका संयोग कर ऐसे सुख उपजे मानूं नेत्र मूंद कर सुखने आचरे है । अरु तिर्यच मनुष्यकी नाई भोग किये सिथिल होय नाहीं । अत्यंत त्रप्त होय जैसे पंचामृत पिये होय । बहुरि वह देवमें ऐसी सक्ति पाइये कभी तो शरीरकू सूक्ष्म कर लेय कभी हल्का शरीर करे कभी भारी शरीर करे कभी आंखके पल मात्रमें असंख्यात् जोजन चाले कभी विदेह क्षेत्रमें जाय तीर्थंकर देवकू वंदे हैं स्तुति करे हैं । कोई स्तुति करे है जय जय भगवानकी जय प्रभूकी जय त्रिलोकी नाथकी जय करुनानंदनी जय संमार समुद्र तारक जय परम वीतराग जय ज्ञानानंद जय ज्ञान स्वरूप जय परम उपगारी जय लोकालोक प्रकाशक जय सुभावमय मोदित जय । स्वपर प्रकाशक जय ज्ञान स्वरूप जय मोक्ष लक्ष्मीके कंत जय सिद्ध स्वरूप जय आनन्द स्वभाव जय चेतन्य जय अखंड सुधारसपून जय ज्वलित मुचलित योति जय निरंजनजय मिराकारजय अमूर्तीक जय परमानंदैककारन जय सहन सुभाव जय सहन स्वरूप जय सर्व विन्ननासक जय सर्व दोषरहित जय निःकलंक जय परम सुभाव नित्यं जय भव्य जीव तारक जय अष्ट कर्म रहित जय ध्यानारूढ़ जय चैतन्य मूर्ति जय सुधारसमई जय ज्ञान मई जय अनन्त सुख मई जय अनन्त दर्शनमई जय अनन्त वीर्यमई जय अतुल जय अव नाती जय अनूपम जय सुखपिन्डजय सर्व तत्व ज्ञायक जय
SR No.022321
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Manager
PublisherSadbodh Ratnakar Karyalay
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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