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________________ ४. उष्ण परीषह - भयंकर गर्मी पड़ने पर भी उसे सहन करना, किन्तु उससे बचने के लिए दोषित शीतोपचार का सेवन नहीं करना ५. दंश परीषह - मच्छर, मक्खी आदि के दंश को इच्छापूर्वक सहन करना, दंश परीषह कहलाता है । ६. अचेलक परोषह - जीर्ण-शीर्ण वस्त्र होने पर भी अच्छे वस्त्रों को इच्छा न करना और हल्के और फटे पुराने वस्त्रों में दीनता न करना । ७. अरति परोषह - संयम मार्ग में विचरण करते हुए प्रतिकूल संयोग मिलने पर भी किसी प्रकार की प्ररति- अरुचि नहीं रखना श्ररति- परीषह है । ८. स्त्री परीषह - विषयसेवन की प्रार्थना करने पर भी किसी स्त्री के अधीन न बनना स्त्री - परोषह कहलाता है । ६. चर्या परीषह - रागादि से आसक्त बनकर किसी एक स्थान पर नहीं रहना और निरन्तर विहार आदि के कष्टों को सहन करना चर्या परोषह है । १०. नैषिधिको परोषह - श्मशान आदि एकान्त स्थान में स्थिर आसनपूर्वक कायोत्सर्ग में रहना । ११. शय्या परीषह - सोने की शय्या प्रतिकूल हो, ऊँचीनीची हो, फिर भी मन में किसी प्रकार का रोष न करना और कष्ट को सहन करना ' शय्या परीषह' है । १२. श्राक्रोश परीषह - कोई गुस्सा करे तो भी गुस्सा न करना और उसे सहन करना 'आक्रोश परीषह' है । शान्त सुधारस विवेचन- २४०
SR No.022305
Book TitleShant Sudharas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasenvijay
PublisherSwadhyay Sangh
Publication Year1989
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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