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विवेचन
ममता की पराधीनता
"अरे भाई! तू इतना खेद क्यों पा रहा है ?" "क्या कहूँ, उसने मेरे सौ रुपये चुरा लिए।" और "रमेश ! तू क्यों उदासीन है ?"
"अाज मेरी कार का एक्सीडेंट हो गया। पूरी कार चकनाचूर हो गई।" ___“ोह सोहन ! तू इतना चिन्तित क्यों दिखाई दे रहा है ?"
"क्या करें, पत्नी नई साड़ी के लिए प्राग्रह कर रही है, किन्तु जेब में पैसे कहाँ है ?"
इस प्रकार देखेंगे तो सारी दुनिया चिन्तित, उदास और अप्रसन्न नजर आएगी। सभी समस्याओं से परेशान हैं, उन्हें सुलझाने के लिए सतत प्रयत्नशील भी हैं, परन्तु आश्चर्य है एक समस्या समाप्त होने के पूर्व ही नई समस्या खड़ी हो जाती है और इस प्रकार समस्याओं का कभी अन्त नहीं होता है।
इस प्रकार चारों ओर समस्याओं से घिरे हुए व्यक्ति को पूज्य उपाध्यायजी म. सलाह दे रहे हैं कि तू व्यर्थ ही सांसारिक पदार्थों की ममता कर खेद पा रहा है, जरा विचार तो कर, क्या ये पदार्थ तेरे हैं ? पर की चिन्ता से तुझे क्या फायदा होने वाला है ? उन बाह्य पदार्थों की प्राप्ति तथा संरक्षण की चिन्ता कर तू व्यर्थ
शान्त सुधारस विवेचन-१५१