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( ८४ लवणोए कालोए अंतिमजलहिम्मि जलयरा सति । सेससमुद्दसु पुणो ण जलयरा संति णियमेण॥१४॥
भाषार्थ-लवणोद समुद्रविष बहुरि कालोद समुद्रविषै तथा अंतका स्वयंभूरमण समुद्रविष जलचर जीव हैं. बहुरि अवशेष वीचिके समुद्रनिविष नियमकरि जलचर जीव नाहीं हैं। ___ आमें देवनिके ठिकाणे कहै हैं. तहां प्रथम भवनवासी व्यंतरनिके कहै हैंखरभायपंकभाए भावणदेवाण होंति भवणाणि । वितरदेवाण तहा दुहं पि य तिरियलोए वि॥१४५॥
__भाषार्थ-खरभाग पंकभागविषै भवनवासीनिके भवन हैं तथा व्यन्तर देवनिके निवास हैं. बहुरि इन दोउनिके तिर्यग्लोकविष भी निवास हैं. भावार्थ-पहली पृथ्वी रत्न- .. प्रभा एक लाख अस्सी हजार योजनकी मोटी, ताके तीन भाग तामें खरभाग सोलह हजार योजनका, वाविषै असुरकुमार विना नवकुमार भवनवासीनिके भवन हैं. तथा राक्षसकुल विना सात कुल व्यंतरनिके निवास हैं. बहुरि दूसरा पंकभाग चौरासी हजार योजनका तामें असुरकुमार भवनवासी तथा राक्षसकुल व्यंतर चसै हैं. बहुरि तिर्यग्लोक जो मध्यलोक असंख्याते द्वीप समुद्र तिनिमें भवनवासीनिके भी भवन हैं, बहुरि व्यन्तरनिके भी निवास हैं। ___आगें ज्योतिषी तथा कल्पवासी तथा नारकीनिकी व. सती कहै हैं