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________________ ( ८५ ) जोइसियाण विमाणा रज्जूमित्ते वि तिरियलोए वि । कप्पसुरा उड्ढाह्मे य अहलोए होंति णेरइया ॥ १४६॥ भाषार्थ - ज्योतिषी देवनिके विमान एक राजू प्रमाण तिर्यग्लोकविषै असंख्यात द्वीप समुद्र हैं, तिनके ऊपरि तिष्ठै हैं. बहुरि कल्पवासी ऊर्ध्वलोकविषै हैं, बहुरि नारकी अधोलोकवि हैं । गें जीवनिकी संख्या कहै हैं, तहां तेजवातकायके जीवनिकी संख्या कहै हैंवादरपज्जत्तिजुदा घणआवलिया असंखभागो दु । किंचूणलोयमिता तेऊ वाऊ जहाकमसो ॥ १४७ ॥ भाषार्थ - अग्निकाय वातकायके वादरपर्याप्तसहित जीव हैं ते घन भावलीके असंख्यातवें भाग तथा कुछ घाटि लोकके प्रदेशप्रमाण यथा अनुक्रम जानने. भावार्थ - अग्निकायके घनआवली असंख्यातवें भाग, वातकायके कुछ एक घाटि लोकप्रदेशप्रपाण हैं । V आगे पृथ्वी आदिकी संख्या कहै हैंपुढवीतोयसरीरा पत्या वि य पट्टिया इयरा । होंति असंखा सेढी पुण्णा पुण्णा य तह य तसा १४८ भाषार्थ - पृथ्वी कायिक अपकायिक प्रत्येकवनस्पतिकायिक समतिष्ठित वा अप्रतिष्ठित तथा त्रस ये सारे पर्याप्त अ पर्याप्त जीव हैं ते जुदे जुदे असंख्यात जगत् श्रेणीप्रमाण हैं ।
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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