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________________ ( ६६ ) उंडा चौडा एक खाडा करना, ताकू उत्तम भोगभूमिविषै उपज्या जो जनमतें लगाय सात दिन ताईका मीढाका बालका अग्रभाग तिनिकरि भूमि समान अत्यन्त गाढा भरना, तामैं रोम पैंतालीस अंकनि परिमाण मावै, तिनकू एक एक रोम खंडकं सौ सौ बरस गये काढै. जिते बरस होंय सो व्यवहार पल्य है. तिनि वर्षनिके असंख्यात समय होय हैं. ब. हुरि तिनि रोमके एक एकके असंख्यात कोडि वर्षके समय होय, तेते तेते खंड कीजिये सो उद्धार पल्यके रोम खंड होंय, तेते समय उद्धार पल्यके हैं। बहुरि इन उद्धार पल्यके एक एक रोम खंडके असंख्यात वर्षके जेते समय होंय तितने खंड कीये श्रद्धापल्यके रोमखण्ड होय हैं ताके समय भी इतने ही हैं. बहुरि दश कोडाकोडी पल्यका एक सागर होय है. बहुरि एक प्रमाणांगुल प्रमाण लंबा एकप्रदेश प्रमाण चौडा उंचा क्षेत्रकं सूच्यंगुल कहिये है. याके प्रदेश अद्धापल्यके अर्द्ध छेदनिकं विरलनकरि एक एक अद्धापल्य तिनपरि स्थापि परस्पर गुणिये जो परिमाण आवै तेते याके प्रदेश हैं. बहुरि याका वर्ग• प्रतरांगुल कहिये. बहुरि सूच्यंगुलके घन घनांगुल कहिये. एक अंगुल चौडा तेताही लांबा अर ऊंचा ताफू धन अंगुल कहिये, बहुरि सात राजू लांबा एक प्रदेश प्रमाण चौडा ऊंचा क्षेत्रकू जगतश्रेणी कहिये. याकी उत्पत्ति ऐसें जो श्रद्धापल्पक अर्द्ध छेदनिका असंख्यातवां भागका प्रमाणकू विरलनकरि एक एक परि घनांगुल देय परस्पर गुणें जा राशि निपजै सो
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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