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________________ ( ६५ ) प्रमाण आठ प्रकार करि कहया है. पल्य, सागर, सूच्यंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल, जगत्श्रेणी, जगतपतर, जगतघन. तहां पल्य तीन प्रकार है-व्यवहारपल्य, उद्धारपल्य, अद्धापल्य. तहां व्यवहारपल्य तौ रोमनिकी संख्या मात्रही है. बहुरि उद्धारपल्यकरि द्वीपसमुद्रनिकी संख्या गणिये हैं. बहरि अ. द्धापल्यकारि कर्मनिकी स्थिति देवादिककी आयुस्थिति गणिये हैं. अब इनका परिमाण जानने... परिभाषा कहै हैं. तो अनन्त पुद्गल के परमाणुनिका स्कन्ध तो एक भवसन्नासन्न नाम है. तातें पाठ आठ गुणो क्रमकरि बारह स्थानक जानने. सन्नासन्न, टरेणु, त्रसरेणु, रथरेणु, उचमभागेभूमिका बालका अग्रभाग, मध्यम भोगभूमिका, जघन्य भोगभूमिका, कर्मभूमिका, लीख, सर , यव, अंगुल ए बारक हैं. सो ऐसे अंगुल भया सो उत्सेध अंगुल है. सो। याकरि नारकी तियेच देव मनुष्यनिके शरीरका प्रमाण ववन कीजिये है, पर देवनिके नगर मंदिर वर्णन कीजिये है. बहुरि उत्सेध अंगुलते पांचसै गुणा प्रमाणांगुल है. यातें द्वीप समुद्र पर्वत आदिकनिका परिमाण वर्णन है. बहुरि आत्मांगुल जहां जैसा मनुष्यनिका होय तिस परिमाण जानना. बहुरि छह अंगुलका पाद होय, दोय पादका एक विलस्त होय, दोय विलस्तका एक हाथ होय, दोय हाथका एक भीष होय, दोय भीषका एक धनुष होय, दोय हजार धनुषका एक कोश होय, च्यारि कोशका एक योजन होय, सो यहां प्रमाणांगुलकरि निपज्या ऐसा एक योजन प्रमाण
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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