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________________ (६४) परि एक एक जघन्य परीतानन्त स्थापनकरि परस्पर गुणे जो परिमाण होय सो जघन्ययुक्तानन्त जानना. तामें एक घटाये उत्कृष्ट परीतानन्त है. मध्य परीतानन्तके वीचिसे नाना भेद हैं. बहुर जघन्य युक्तानंत• जघन्य युक्तानन्तकरि एकवार परस्पर गुणे जघन्य अनंतानंत है. यामेंसू एक घटाये उत्कृष्ट युक्तानंत होय है. मध्य युक्तानन्तके वीचमें नाना भेद हैं. अब उत्कृष्ट अनन्तानंतकू ल्यावनेका उपाय कहै हैं. तहां जपन्य अनंत नंत परिमामा शलाका विग्लन देय. इन तीन गांशव रि अनुक्रमते पहलै वह्या तैसे शलाकात्रयनिष्ठापन करै. तब मध्य अनंतानंतका भेद रूप राशि में निपजै है. ताविषै छह गशि मिला सिद्धराशि, निगोदराशि, प्रत्येक वनस्पतिमहिन निगोदराशि, पुद्गलराशि, कालके समय, शाशके प्रदेश ये छह राशि मध्य अनन्तानंत के भेदरूप मिलाय शलाकात्रयनिष्ठापन पूर्ववत् विधानकरि करना तब मध्य अनन्तानन्तका भेद रूप ाशि निपजै, ता. विष फेरि धर्मद्रव्य अधर्मद्रयके उगुरुलघु गुणके अविभागप्रतिच्छेद मिलाय जो महाराशि परिमाण राशि भया. ताळू फेरि पूर्वोक्त विधानकर शलकात्रय शिष्ट पन करिये तब जो कोई मध्य अनन्तानंतका भेदरूप राशि भया, ताकुं केवलज्ञानके अविभागप्रातच्छेदनका समूह परिमाणविष घट य फेरि मलाइये तब केवल ज्ञानके अविभागलतिच्छेद रूप उत्कृष्ट अनंतानंत परिमाण राशि होय है बहुरि उपमा
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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