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________________ जगतश्रेणी है. बहुरि जगतश्रेणीका वर्ग सो जगतप्रतर कहिये बहुरि जगतश्रेणीका घन सो जगतपन कहिये. सात राजु चौडा लांबा ऊंचाकं जगतधन कहिये. यह लोकके प्रदेशनि का प्रमाण है. सो भी मध्य असंख्यातका भेद है. ऐसे ए गणित संक्षेप करि कही. बहुरि गणितका कथन विशेषकरि मोम्मटसार त्रिलोकसारतें जानना. द्रव्यमें तो सूक्ष्म पुगल परमाणु, क्षेत्रमें श्राकाशके प्रदेश; कालमें समय, भावमें अविभागप्रतिच्छेद, इन च्यारूहीकू परस्पर प्रमाण संज्ञा है। सो घाटिसू पाटि तो ये हैं अर बाधिसू वाधि द्रव्यमें तौ महास्कन्ध, क्षेत्रमें आकाश, कालमें तीनू काल, भावमें केवल ज्ञान, ऐसा जानना. बहुरि कालमें एक आवलीके जघन्य युक्तासंख्यात समय हैं. अर असंख्यात आवलीका मुहूर्त है. तीस मुहूर्त्तका दिनराति है. तीस दिन रातिका एक मास । है. बारह मासका एक वर्ष है. इत्यादि जानना। ' आगें प्रथम ही लोकाकाशका स्वरूप कहै हैंसव्वायासमणतं तस्स य बहुमन्झिसंठियो लोओ। सो केण वि णेय कओ ण य धरिओ हरिहरादीहिं॥ . भाषार्थ-आकाश द्रव्य है ताका क्षेत्र प्रदेश अनन्त है. ताका बहुमध्यदेश कहिये वीचही वीचका क्षेत्र, तावि तिष्ठे ऐसा लोक है. सो काहू करि कीया नाहीं है तथा कोई इरिहरादिकरि धारथा, वा राख्या नाहीं है. भावार्थ-केई अन्य मतमें कहै हैं जो लोककी रचना ब्रह्मा करै है. नारायण रक्षा
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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