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________________ (२८९) दोहा। प्राकृत स्वामिकुमार कृत, अनुमेक्षा शुभ ग्रन्थ । .. देशवचनिका तासकी, पढौ लगौ शिवपंथ ॥१॥ चौपई। देश इंढाड़ जयपुर थान । जगतसिंह नृपराज महान। न्यायबुद्धि ताकै नित रहै । ताकी महिमा कोकवि कहै ॥२॥ ताके मंत्री बहुगुणवान । तिनकै मंत्र राजसुविधान ॥ . ईति भीति लोकनिकै नाहिं । जो व्याप तौ झट मिटि जाहिं धर्मभेद सब मतके मले । अपने अपने इष्ट जु चले ॥ जैनधर्मकी कथनी तनी । भक्ति प्रीति जैननिकै धनी ॥४॥ तिनमें तेरापंथ कहाव । धरै गुणीजन करै बढाव ।। तिनिके मध्य नाम जयचंद्र । मैं हूं आतमराम अनंद ॥ ५॥ धर्मरागते ग्रन्थ विचारि । करि अभ्यास लेय मनधारि ॥ भावन बारह चितवन सार ।सो हूं लखि उपज्यो सुविचार ६ देशवचनिका करिये जोय। सुगम होय बांचै सब कोय ॥ यातें रची वनिका सार । केवल धर्मराग निरधार ॥७॥ मूलग्रन्थतें घटि वढि होय । ज्ञानी पंडित सोधौ सोय ॥ अल्पबुद्धिकी हास्य न करें। संतपुरुषमारग यह धरै ॥८॥ बारह भावनकी भावना । बहु लै पुग्ययोग पावना ॥ . तीर्थकर वैराग जु होय । तब भाबै सब राग जु खोय ॥९॥ दीक्षा घारै तब निरदोष । केवल ले अरु पावै मोष ॥ - यह विचारि भावौ भवि जीव । सब कल्याण सु घरौ सदीव ॥
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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