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पंच परमगुरु अरु जिनधर्म । जिनवानी भाषै सव मर्म । चैत्य चैत्यमंदिर पढि नाम । नमूं मानि नव देव सुधाम ११
दोहा। संवत्सर विक्रमतगू, अष्टादशशत जानि ।
सठि सावण तीज वदि, पूरण भयो सुपानि ॥१२॥ जैनधर्म जयवंत जग, जाको मर्म सु पाय । वस्तु यथारथरूप लखि, ध्यायें शिवपुर जाय ॥१३॥ इति श्रीस्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा जयचंदजीकृत
वचनिकासहित समाप्त ।