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________________ ज्ञानसार नानाविध मोहसम्बन्ध करके अजीब घुटन महसूस हो रही है ? विषय विवशता और कषाय पराधीनता में तुम्हें अपना विनिपात नजर आ रहा है ? तुम ऐसे भयावने संसार से मुक्त होना चाहते हो ? लेकिन यों मुक्त होने की नीरी भावना से क्या होगा ? तुम्हारे में उसकी वासना पैदा होनी चाहिये । तब काम बनेगा। पिंजरे में बन्द सिंह की, उससे मुक्त होने की वासना तुमने देखी होगी और साथ ही उसकी तडप और प्रयत्नों की पराकाष्ठा भी ? ७० संसार के बन्धनों से मुक्त होकर तुम मोक्ष जाना चाहते हो ? मोक्ष की अन्तहीन स्वतंत्रता चाहते हो ? उसकी अनंत गुण-समृद्धि के अधिकारी बनना चाहते हो ? उसका अनन्त ज्ञान और अनन्त दर्शन पाने की तीव्र लालसा तुम में है ? तब तुम्हें एक पुरुषार्थ करना होगा... महापुरुषार्थ का बिगुल बजाना होगा । भाग्य के भरोसे नहीं रह सकते । काल का बहाना करने से काम नहीं चलेगा। भावी के कल्पनालोक में खो जाने से नहीं चलेगा । बल्कि भगीरथ पुरुषार्थ और पराक्रम करने से ही सम्भव है । मन वचन - काया से उसमें जुट जाना होगा । ' आराम हराम है'- सूक्ति को जीवन में कार्यान्वित करना होगा । तभी सम्भव है । 1 तुम्हें अपनी पाँच इन्द्रियों को वशीभूत करना होगा। उन पर विजय पानी होगी । शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श की लोलुप इन्द्रियों को नियंत्रित करना होगा । अमर्यादित इच्छाओं का निग्रह करना पडेगा । शब्द, रूप, रसादि की जो भी इच्छायें पैदा हों, उनकी पूर्ति न करो। उन्हें पूरी नहीं करने का मन ही मन दृढ़ संकल्प करो और यदि सब करते हुए असंख्य दुःखों का सामना करना पड़े, तो हँसते हुए सहना सीखो । दुःख-दर्द सहने की आत्म-शक्ति को विकसित करो । शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्शजन्य सुखों का उपभोग करने की, उनके माध्यम से आमोद-प्रमोद प्राप्त करने की वर्षों पुरानी आदत का उच्चाटन करने की निश्चित योजना बनाकर तप-त्याग - ज्ञान - भक्ति आदि के पुरुषार्थ में लग जाओ । नये सिरे से अपने जीवन में उसका आरम्भ कर दो । संसार - त्याग और मोक्ष - प्राप्ति के लिये इन्द्रिय-विजय का अभियान सर्वथा अनिवार्य है ।
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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