________________
५. ज्ञान
अमोही बनना मतलब ज्ञानी बनना ।
आत्मा पर से मोह का आवरण दूर होते ही ज्ञान का प्रकाश देदीप्यमान हो उठता है । ज्ञानज्योति प्रज्वलित हो उठती है। अ-मोही का ज्ञान भले ही एक शास्त्र, एक श्लोक अथवा एक शब्द का क्यों न हो, वह जीवात्मा को निर्वाणपद की ओर बढाने में और प्राप्ति में पूर्णतया शक्तिमान होता है।
जिस ज्ञान के माध्यम से आत्मस्वभाव का बोध होता है, उसको ही वास्तविक ज्ञान कहा गया है। वाद-विवाद और विसंवाद निर्माण करनेवाला ज्ञान, ज्ञान नहीं है। अ-मोही आत्मा प्रायः वादविवाद और विसंवाद से परे रहता है।
ध्यान में रखिये ! थोड़ा भी अमोही बन, इस अष्टक का अध्ययन-मनन और चिन्तन करना । तभी ज्ञान के वास्तविक रहस्य को आप आत्मसात् कर सकेंगे।
मज्जत्यज्ञः किलाज्ञाने, विष्टायामिव शूकरः । । ज्ञानी निमज्जति ज्ञाने, मराल इव मानसे ॥५॥१॥
अर्थ : जैसे सूअर हमेशा विष्टा में मग्न होता है, वैसे ही अज्ञानी सदा अज्ञान में ही मग्न रहता है । जैसे राजहंस मानसरोवर में निमग्न होता है, ठीक उसी तरह ज्ञानी पुरुष ज्ञान में निमग्न होता है।
विवेचन : मनुष्य बार-बार कहाँ जाता है, पुनः पुनः उसे क्या याद आता है, वह किसकी संगत में अपना अधिकाधिक समय व्यतीत करता है, क्या सुनना उसको प्रिय है, क्या जानना वह पसन्द करता है ? यदि इसका सावधानी के