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(१) क्षुधा (२) पिपासा
(३) शीत
(४) ऊष्ण
(५) दंश
(६) अचेल
(७) अरति
(८) स्त्री
(९) चर्या
(१०) नैषेधिकी
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(११) शय्या
(१२) आक्रोश
(१३) वध
(१४) याचना
(१५) अलाभ
(१६) रोग
(१७) तृणस्पर्श
(१८) मल
(१९) सत्कार
(२०) प्रज्ञा
(२१) अज्ञान
(२२) सम्यक्त्व :
: ऊँची नीची खड्डे वाली जमीन पर रहना ।
दूसरों का क्रोध या तिरस्कार होना ।
प्रहार होना ।
भिक्षा मांगना |
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भूख लगना ।
प्यास लगना ।
सर्दी लगना ।
गर्मी लगना ।
मच्छरों आदि से तकलीफ ।
जीर्ण वस्त्र पहनना ।
संयम में अरुचि ।
स्त्री को देखकर विकार होना ।
उग्र विहार ।
एकान्त स्थान में रहना ।
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इच्छित वस्तु नहीं मिलना ।
रोग की पीड़ा होना ।
संथारे पर बिछाये हुए घास का स्पर्श ।
शरीर पर मैल (कचरा) जमना ।
मान-सम्मान मिलना ।
: बुद्धि का गर्व ।
ज्ञान प्राप्त नहीं होना ।
जिनोक्त तत्त्व में सन्देह करना ।
ज्ञानसार
इन' परिसहों में विचलित नहीं होना । सम्यक् भाव से सहन करना । साधुजीवन
में आनेवाले इन विघ्नों को समताभाव से सहन करना चाहिए। इससे मोक्षमार्ग में स्थिरता प्राप्त होती है और कर्मों की निर्जरा होती है
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१. मार्गाच्यवननिर्जरार्थं परिषोढव्याः परिसहाः ॥८॥
क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यारतिस्त्रीचर्या निषद्याशय्याऽऽक्रोश वधयाचनाला
—तत्वार्थसूत्र : अध्याय ९
भरोगतृणस्पर्शमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाज्ञानादर्शनानि ।