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________________ ५५४ (१) क्षुधा (२) पिपासा (३) शीत (४) ऊष्ण (५) दंश (६) अचेल (७) अरति (८) स्त्री (९) चर्या (१०) नैषेधिकी : : : : : : : : : (११) शय्या (१२) आक्रोश (१३) वध (१४) याचना (१५) अलाभ (१६) रोग (१७) तृणस्पर्श (१८) मल (१९) सत्कार (२०) प्रज्ञा (२१) अज्ञान (२२) सम्यक्त्व : : ऊँची नीची खड्डे वाली जमीन पर रहना । दूसरों का क्रोध या तिरस्कार होना । प्रहार होना । भिक्षा मांगना | : : C : : : : भूख लगना । प्यास लगना । सर्दी लगना । गर्मी लगना । मच्छरों आदि से तकलीफ । जीर्ण वस्त्र पहनना । संयम में अरुचि । स्त्री को देखकर विकार होना । उग्र विहार । एकान्त स्थान में रहना । : इच्छित वस्तु नहीं मिलना । रोग की पीड़ा होना । संथारे पर बिछाये हुए घास का स्पर्श । शरीर पर मैल (कचरा) जमना । मान-सम्मान मिलना । : बुद्धि का गर्व । ज्ञान प्राप्त नहीं होना । जिनोक्त तत्त्व में सन्देह करना । ज्ञानसार इन' परिसहों में विचलित नहीं होना । सम्यक् भाव से सहन करना । साधुजीवन में आनेवाले इन विघ्नों को समताभाव से सहन करना चाहिए। इससे मोक्षमार्ग में स्थिरता प्राप्त होती है और कर्मों की निर्जरा होती है I १. मार्गाच्यवननिर्जरार्थं परिषोढव्याः परिसहाः ॥८॥ क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यारतिस्त्रीचर्या निषद्याशय्याऽऽक्रोश वधयाचनाला —तत्वार्थसूत्र : अध्याय ९ भरोगतृणस्पर्शमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाज्ञानादर्शनानि ।
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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