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________________ ५४० ज्ञानसार यह ज्ञपरिज्ञा और उन आरम्भ-समारम्भ का त्याग करना, उसका नाम प्रत्याख्यानपरिज्ञा है । मुनि इन दोनों परिज्ञाओं से सर्व पाप-आचारों को जाने और उनका त्याग करे । भावपरिज्ञा का विशेष स्पष्टीकरण करते हुए श्री शीलांकाचार्यजी ने कहा हैभावपरिज्ञाः 'आगम' से ज्ञपरिज्ञा का ज्ञाता और उसमें उपयोगवाला आत्मा स्वयम् । 'नो आगम' से ज्ञानक्रिया रूप इस अध्ययन अथवा ज्ञपरिज्ञा का ज्ञाता और अनुपयुक्त। प्रत्याख्यानपरिज्ञा भी इसी प्रकार समझना । विशेष में, 'नो आगम' से प्राणातिपातनिवृत्ति त्रिविध-त्रिविध समझने की है। १३. पंचास्तिकाय पाँच द्रव्यों का विश्व है । विश्व का ज्ञान करने के लिए पाँच द्रव्यों का ज्ञान करना पड़ता है । विश्व पाँच द्रव्य ।। 'द्रव्य' परिभाषा १. 'सत्तालक्षणम् द्रव्यम्'-सत्ता जिसका लक्षण है, उसे द्रव्य कहते हैं। यह परिभाषा द्रव्यार्थिक नय से करने में आई है। २. 'उत्पादव्ययध्रौव्यसंयुक्तं द्रव्यम्' जो उत्पत्ति, विनाश तथा ध्रुवता से संयुक्त हो वह द्रव्य कहलाता है । यह व्याख्या पर्यायार्थिक नय से करने में आई है। ३. 'गुणपर्यायवद् द्रव्यम्' गुण-पर्याय का जो आधार है वह द्रव्य है । श्री तत्त्वार्थ सूत्र में भी यह व्याख्या की गई है । (अध्याय ५, सूत्र ३७) प्रथम व्याख्या के आधार पर बौद्धदर्शन की मान्यता का खण्डन हो जाता है। दूसरी व तीसरी व्याख्या के आधार पर सांख्य व नैयायिक दर्शन का निरसन हो जाता १. 'जगच्छब्देन सकलधर्माधर्माकाशपुद्गलास्तिकायपरिग्रहः।' -श्री नन्दीसूत्रटीकायाम् २. एते धर्मादयश्चत्वारो जीवाश्च पञ्चद्रव्याणि च भवन्ति । -तत्त्वार्थ-भाष्ये, अ०५ ३. दव्वं सल्लक्खणियं उप्पादव्ययधुवत्तसंजुत्तं । गुणपज्जयासयं वा जंतं भण्णति सव्वण्हू ॥१०॥ -पञ्चास्तिकाये
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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