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________________ परिशिष्ट : नयविचार ५३७ वाच्य 'गुरु' का अर्थ अलग और बहुवचन वाच्य 'गुरवः' का अर्थ अलग ! इसी तरह पुल्लिंग अर्थ नपुंसकलिंग से वाच्य नहीं और स्त्रीलिंग से भी वाच्य नहीं । नपुंसकलिंगअर्थ पुल्लिंग-वाच्य नहीं और स्त्रीलिंगवाच्य भी नहीं । ऐसा स्त्रीलिंग के लिए भी समझना। ___ यह नय अभिन्न लिंग-वचनवाले पर्याय शब्दों की एकार्थता मानता है। अर्थात् इन्द्र-शक्र-पुरन्दर वगैरह शब्द जिनका कि लिंग-वचन समान है, उन शब्दों की एकार्थता मानता है । उनका अर्थ भिन्न-भिन्न नहीं मानता । 'शब्दाभिधेयार्थप्नतिक्षेपी शब्दनयाभासः ।' शब्दाभिधेय अर्थ का प्रतिक्षेप (अपलाप) करनेवाला नय शब्दनयाभास कहलाता है। समभिरूढ़ : शब्दनय तथा समभिरूढ़ नय में एक भेद है। शब्द नय अभिन्न लिंग वचनवाले पर्याय शब्दों की एकार्थता मानता है, जबकि समभिरूढ़ नय पर्याय शब्दों की भिन्नार्थता मानता है । शब्द के व्युत्पत्ति-अर्थ को ही मानता है। 'पर्यायशब्देषु निरूक्तिभेदेन भिन्नमर्थं समभिरोहन् समभिरूढ़ः ।' -जैन तर्कभाषा - यह नय पर्यायभेद से अर्थभेद मानता है । पर्याय शब्दों के अर्थ में रहे हुए अभेद की उपेक्षा करता है । इन्द्र, शक्र, पुरन्दर वगैरह शब्दों का अर्थ भिन्न-भिन्न करता है। उदाहरण : इन्दनादिन्द्रः, शकनाच्छकः, पूर्दारणात् पुरन्दरः ।। एकान्तत:' पर्याय-शब्दों के अर्थ में रहे हुए अभेद की उपेक्षा करनेवाला नय मिथ्यानय, नयाभास कहलाता है । एवंभूत : ____ 'शब्दानां स्वप्रवृत्तिनिमित्तभूतक्रियाविष्टमर्थं वाच्यत्वेनाभ्युपगच्छन्नेवम्भूतः।' -जैन तर्कभाषा किसी भी शब्द के जिस व्युत्पत्ति-अर्थ के अनुसार क्रिया में परिणत पदार्थ हो वही उस शब्द से वाच्य बनता है। १.-पर्यायध्वनीनामभिधेयनानात्वमेव कक्षीकुर्वाणः समभिरुढ़ाभासः। जैन तर्कभाषा
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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