SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 558
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट : नयविचार ५३३ - 'प्रमाण' और 'नय' में यह भेद है। नय प्रमाण का एक देश (अंश) है। जिस तरह से समुद्र का एक देश (अंश) समुद्र नहीं कहलाता उसी तरह असमुद्र भी नहीं कहलाता । इसी तरह नयों को प्रमाण नहीं कहा जा सकता तथा अप्रमाण भी नहीं कहा जा सकता। श्री' 'आवश्यक सूत्र' की टीका में श्रीयुत मलयगिरिजी ने प्रतिपादन किया है कि 'जो नय नयान्तर सापेक्षता से 'स्यात्' पदयुक्त वस्तु का स्वीकार करता है, वह परमार्थ से परिपूर्ण वस्तु का स्वीकार करता है, इसलिये उसका 'प्रमाण' में ही अन्तर्भाव हो जाता है । जो नयान्तर निरपेक्षता से स्वाभिप्रेत धर्म के आग्रह से वस्तु को ग्रहण करने का अभिप्राय धारण करता है वह 'नय' कहलाता है। क्योंकि वह वस्तु के एक अंश का ग्रहण करता है। 'नय' की यह परिभाषा नयवाद को मिथ्यावाद सिद्ध करती है। 'सव्वे नया मिच्छावाईणो' इस आगम की उक्ति से सभी नयों का वाद मिथ्यावाद है। नयान्तर निरपेक्ष नय को महोपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज ने 'नयाभास' कहा है। 'श्री सम्मतितर्क' में सिद्धसेनदिवाकरसूरिजी नयों के मिथ्यात्व तथा सम्यक्त्व का माध्यम इस प्रकार बताते हैं : तम्हा सव्वे पि मिच्छादिट्ठी सपक्खपडिबद्धा । अण्णोण्णणिस्सिया उण हवन्ति सम्मत्तसब्भावा ॥२१॥ 'स्वपक्षप्रतिबद्ध सभी नय मिथ्यादृष्टि हैं । अन्योन्य सापेक्ष सभी नय समकित दृष्टि हैं।' दृष्टान्त द्वारा उपरोक्त कथन को समझाते हुए उन्होंने कहा है : जहाणेयलक्खणगुणा वेरुलियाईमणी विसंजुत्ता। रयणाबलिववएसं न लहंति महग्धमुल्ला वि ॥२२॥ १. यथा हि समुद्रकदेशो न समुद्रो नाप्यसमुद्रस्तथा नया अपि न प्रमाणं चाऽप्रमाणमिति । - जैन तर्कभाषायाम् २. इह यो नयो नयान्तरसापेक्षतया स्यात्पदलाञ्छितं वस्तु प्रतिपद्यते स परमार्थतः परिपूर्ण वस्तु गृहणाति इति प्रमाण एवान्तर्भवति, यस्तु नयवादान्तरनिरपेक्षतया स्वाभिप्रेतेनैव धर्मेण अवधारणपूर्वक वस्तु परिच्छेत्तुमभिप्रेति स नयः। -आवश्यकसूत्र-टीकायाम्
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy