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________________ परिशिष्ट : अध्यात्मादि योग ५०९ का यह दिव्य अमृत अतिदारूण मोह रूपी विष के विकारों का उन्मूलन कर डालता है । इस आध्यात्मिक पुरुष का मोह पर वर्चस्व जम जाता है । २. भावनायोग : उपर्युक्त' औचित्यपालन, व्रतपालन और मैत्र्यादिप्रधान नव तत्त्वों का प्रतिदिन अनुवर्तन-अभ्यास करना, उसका नाम भावनायोग हैं । जैसे-जैसे अभ्यास बढ़ता जाता है वैसे-वैसे उनमें समुत्कर्ष होता जाता है और मन की समाधि बढ़ती जाती है । यह भावनायोग सिद्ध होने पर अशुभ अध्यवसायों (विचारों) से जीव निवृत्त होता है । ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप वगैरह शुभ भावों के अभ्यास के लिये अनुकूल भावना की प्राप्ति होती है और चित्त का सम्यक् समुत्कर्ष होता है। ___ भावनायोगी के आंतरिक क्रोधादिकषाय मंद पड़ जाते हैं । इन्द्रियों का उन्माद शान्त हो जाता है । मन-वचन-काया के योगों को वह संयमित रखता है। मोक्षदशा प्राप्त करने की अभिलाषावाला बनता है और विश्व के जीवों के प्रति वात्सल्य धारण करता है। ऐसी आत्मा निर्दभ हृदय से जो क्रिया करती है, उससे उसके अध्यात्मगुणों की वृद्धि होती है। ३. ध्यानयोग : 'प्रशस्त किसी एक अर्थ पर चित्त की स्थिरता होना, उसका नाम 'ध्यान' है। वह ध्यान धर्मध्यान या शुक्लध्यान हो तो वह ध्यानयोग बनता है। भूमिगृह कि जहाँ वायु का प्रवेश नहीं हो सकता, वहाँ जलते हुए दीपक की ज्योति के समान ध्यान स्थिर हो अर्थात स्थिर दीपक के जैसा हो। चित्त का उपयोग उत्पाद, व्यय, घ्रौव्य वगैरह सूक्ष्म पदार्थों में होना चाहिए। इस प्रकार 'श्री योगबिंदु' ग्रन्थ में प्रतिपादन किया हुआ है। ___इस ध्यानयोग से प्रत्येक कार्य में भावस्तैमित्य आत्मस्वाधीन बनता है। पूर्व ४. अभ्यासोऽस्यैव विज्ञेयः प्रत्यहं वृद्धिसंगतः। ___मनः समाधिसंयुक्तः पौन:पुन्येन भावना ॥३६०॥ योगबिन्दुः । ५. निवृत्तिरशुभाभ्यासाच्छुभाभ्यासानुकूलता। तथा सुचित्तवृद्धिश्च भावनायाः फलं मतम् ॥३६१।। योगबिन्दुः । ६. शान्तो दान्तः सदा गुरूतो मोक्षार्थी विश्ववत्सलः। निर्दम्भां यां क्रियां कुर्यात् साध्यात्मगुणवृद्धये ॥२२५।। अध्यात्मसारे। ७. वशिता चैव सर्वत्र भावस्तमित्यमेव च। अनुबन्धव्यच्छेद उदोऽस्योति तद्विदः ॥३६३।। योगबिन्दुः।
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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