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________________ ५०४ २१. पुद्गल परावर्तकाल २२. कारणवाद २३. चौदह राजलोक २४. यतिधर्म २५. समाचारी २६. गोचरी : ४२ दोष २७. चार निक्षेप २८. चार अनुयोग २९. ब्रह्म अध्ययन ३०. ४५ आगम ३१. तेजोलेश्या ज्ञानसार १. कृष्ण पक्ष - शुक्ल पक्ष अनन्तकाल से अनन्त जीव चतुर्गतिमय संसार में परिभ्रमण कर रहे हैं। वे जीव दो प्रकार के हैं : भव्य तथा अभव्य । जिस जीव में मोक्षावस्था प्राप्त करने की योग्यता होती है उसे 'भव्य' कहा जाता है तथा जिस जीव में वह योग्यता नहीं होती उसे 'अभव्य' कहते हैं । भव्य-जीव का संसारपरिभ्रमणकाल जब एक 'पुदगल परावर्त' बाकी रहता है, अर्थात् मोक्षदशा प्राप्त करने के लिए एक पुद्गल - परावर्तकाल बाकी रहता है तब वह जीव 'चरमावर्त' में आया हुआ कहा जाता है । एक पुद्गल-परावर्त का आधे से अधिक काल व्यतीत होने पर, वह जीव, 'शुक्लपाक्षिक' कहलाता है । किन्तु जो जीव कालमर्यादा में नहीं आया होता है वह 'कृष्णपाक्षिक' कहलाता है, अर्थात् वह जीव कृष्णपक्ष में अर्थात् मोह... अज्ञानता के प्रगाढ़ अन्धकार में रहा हुआ होता है । श्री जीवाभिगम सूत्र के टीकाकार महर्षि ने भी उपरोक्त बात का समर्थन किया ::
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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