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ज्ञानसार
ग्रन्थकार ने अपनी कृति में स्वयं का नाम-निर्देश न करते हुए काशी में प्राप्त 'न्यायविशारद' उपाधि का उल्लेख किया है । अपनी इस कृति के लिए उन्होंने आशा व्यक्त करते हुए कहा है :
'प्रस्तुत कृति महाभाग्यशाली और पुण्यशाली पुरुषों के लिए प्रीति कारक सिद्ध हो ।" "ज्ञानसार" के अध्ययन, मनन और चिंतन से असीम प्रीति और आनन्द प्राप्त करनेवाली महा भाग्यवन्त आत्माएँ हैं। _ 'ज्ञानसार' में से ज्ञानानन्द और पूर्णानन्द प्राप्त करने का सौभाग्य समस्त जीवों को प्राप्त हो ।
-सम्पूर्ण