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________________ नियाग (यज्ञ) ४२७ जकड जाएगा क्या ? नहीं, हर्गिज नहीं । किसी ब्राह्मणी की कुक्षी से उत्पन्न हुआ वह ब्राह्मण ? नहीं नहीं... जो ब्रह्मयज्ञ करे वह ब्राह्मण ! ब्राह्मण बनने के लिए निरे अज्ञानतापूर्ण यज्ञ-कर्म करने से काम नहीं चलता ! पूज्यपाद उपाध्यायजी महाराज ने ब्राह्मण को ही श्रमण, भिक्षु और निर्ग्रन्थ कहा है। फिर भले वह श्रमण हो भिक्षु हो या निग्रंथ हो-वह सिर्फ ब्रह्मयज्ञ का कर्ता और करानेवाला होना आवश्यक है ! उसके जीवन में सिवाय ब्रह्म और कोई तत्त्व न हो, पदार्थ न हो और ना ही कोई वस्तु ! उसकी तन्मयता, तल्लीनता, प्रसन्नता... जो भी हो वह ब्रह्म हो । सारांश : भाव-यज्ञ करो ! -निष्काम यज्ञ करो ! -हिंसक यज्ञ वर्ण्य हो ! -गृहस्थ के लिए वीतराग की पूजा ब्रह्मयज्ञ है । -कर्म-क्षय के उद्देश्य से भिन्न आशय को लेकर किया गया पुरुषार्थ कर्म-क्षय नहीं करता। -स्व-कर्तृत्व के मिथ्याभिमान को ब्रह्मयज्ञ की अग्नि में स्वाहा कर दो । -ब्रह्मार्पण का वास्तविक अर्थ समझो ! -ब्रह्म की परिणतिवाला ब्राह्मण कहलाता है। ..
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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