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________________ लोकसंज्ञा-त्याग शान्ति की कोई सीमा नहीं ! | श्रमण को सुख-प्राप्ति के चार उपाय सुझाये हैं : १. परब्रह्म में समाधि २. द्रोह-त्याग ३. ममता-त्याग ४. मत्सर-त्याग ब्रह्म का मतलब है संयम । संयम में पूर्ण लीनता ! संयम के सतरह प्रकार जानते हो... ? पञ्चाश्रवान् विरमणं पंचेन्द्रियनिग्रहः कषायजयः । दण्डनयबिरतिश्चेति संयमः सप्तदश भेदः ॥ -श्री प्रशमरति मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, योग और प्रमाद, इन, पाँच आश्रवों से मुक्त बनो । अपनी पाँच इन्द्रियों पर सदैव संयम रखो । क्रोध, मान, माया, लोभ-इन कषायों पर विजयश्री प्राप्त करो । मन, वचन, काया को अशुभ प्रवृत्तियों को लगाम दो । यही तुम्हारी सर्व-श्रेष्ठ समाधि है। द्रोह को त्याग दो, किसीको धोखा मत देना। श्री जिनेश्वर भगवन्त के शासन के साथ भूलकर भी कभी दगाबाजी न करना । सदैव निष्ठावान बने रहना। अपने शारीरिक सुख और शान्ति के लिए भगवान के शासन का कदापि परित्याग न करना। उनके सिद्धान्त और नियमों का उल्लंघन न करना । तुम्हें भगवान महावीर का वेश प्राप्त है । तुमने उसे परिधान कर रखा है। ध्यान रहे, उसकी इज्जत न जाने पाए । इस वेश के कारण तुम्हें अन्न, वस्त्र, पात्र, पुस्तकादि सामग्री प्राप्त होती है। लोग तुम्हारे समक्ष नतमस्तक होते हैं । तुम्हारा मान-सन्मान करते हैं। अतः जीवन में साधुवेश का कभी द्रोह न करना । ममता को त्याग देना । सांसारिक स्वजन-परिजनों के प्रति रही ममता का परित्याग करना । भक्तजनों पर भूलकर भी ममत्व मत रखना । तन-बदन उपधि उपाश्रयादि बाह्य पदार्थों के लिए मन में रही ममता का त्याग करना ही इष्ट है । जब तक अन्य पदार्थों के प्रति ममत्व भावना जागृत रहेगी, तब तक
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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