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________________ ३२० ज्ञानसार वह बखूबी जानता है कि इससे उसका दर्द और बीमारी दूर होनेवाली है: रोगनिवारण का यही एक सरल, सुगम मार्ग है । तब भला खंधक मुनि राजकर्मचारियों द्वारा अपनी चमड़ी छिलते देख भयभीत क्यों होते ? उन पर रोष किसलिये करते ? उन्हें तो यह महज एक शल्यक्रिया लगी । उस क्रिया से भव के भय का निवारण जो हो रहा था । ___ अवंति सुकुमाल ने खुद ही सियार को अपना शरीर चीरने-फाड़ने दिया, उसे भरपेट खाने दिया, खून का पान करने दिया । आखिर क्यों ? वह इसलिए कि उससे उनका भवरोग जो मिटनेवाला था । मेतारज मुनि ने सुनार को अपने सिर पर चमड़े की पट्टी चुपचाप बाँधने दी... जरा भी विरोध नहीं किया। क्योंकि उससे उनके भवरोग के भय का निवारण होनेवाला था । भगवान महावीर ने ग्वाले को कान में कील ठोकने दिया, संगम को काल-चक्र रखने दिया,... गोशालक की अनाप-शनाप बकवास सहन की । इसके पीछे एक ही कारण था : ये सारी क्रियायें उनके भवरोग को मिटनेवाली रामबाण औषधियाँ जो थीं। । ___ भगवन्त ने मुनियों को उपसर्ग सहने का उपदेश दिया, भला किस लिए? मुनिगण संसार का भय दूर करने के लिये आराधना-साधना करते हैं। उपसर्गों के माध्यम से उसका 'ऑपरेशन' होता है और संसार का भय सदा के लिये मिट जाता है। साथ ही ऑपरेशन करनेवाले रोगी के मन में डॉक्टर के प्रति रोष की भावना पैदा नहीं होती । उसके लिए वह डॉक्टर परमोपकारी सिद्ध होता है। तभी खंधकमुनि को राजकर्मचारी उपकारी प्रतीत हुए । अवंति सुकुमाल को सियार उपकारी लगा और मेतारज मुनि को सुनार । ठीक इसके विपरीत ऑपरेशन करनेवाला डॉक्टर बीमार को दुष्ट प्रतीत हो... अनुपकारी लगे तो ऑपरेशन बिगड़ते देर नहीं लगती। इसी तरह उपसर्गकर्ता दुष्ट लगे, तो मानसिक संतुलन ढलते विलम्ब नहीं होगा। साथ ही संसार के भय में एकाएक वृद्धि हो जाएगी। खंधकसूरिजी को मन्त्री पालक 'डॉक्टर' न लगा, बल्कि कोई दुष्ट लगा । फलतः उनका संसार भय दूर न हुआ। उनके शिष्यों के लिये मन्त्री पालक मुक्ति पाने में अनन्य सहायक बन गया ।
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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