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भवोद्वेग
२. संसार - समुद्र की सतह अज्ञान - वज्र की बनी हुई है ।
३. संसार - समुद्र में संकटों के पहाड़ हैं ।
४. संसार - समुद्र का मार्ग विकट - विषम है ।
संसार-स
में विषयाभिलाषा की प्रचंड वायु वह रही है ।
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५.
- समुद्र
६. संसार समुद्र में क्रोधादि कषायों के पाताल - कलश हैं ।
७. संसार - समुद्र में विकल्पों का ज्वार आता है ।
८. संसार - समुद्र में रागयुक्त इन्धन से युक्त कंदर्प का दावानल प्रज्वलित है । ९. संसार - समुद्र में रोग के मच्छ और शोक के कछुए स्वच्छंद विहार कर रहे
हैं ।
१३.
संसार
।
१०. संसार - समुद्र पर दुर्बुद्धि की बिजली रह-रहकर कौंधती है । ११. संसार - समुद्र पर माया - मत्सर का भीषण तूफान गहरा रहा है । १२. संसार - र - समुद्र में द्रोह का भयंकर गर्जन हो रहा है । - समुद्र में नाविकों पर संकट के पहाड़ टूट पड़े हैं । अतः संसार-समुद्र सर्वथा दारुण है और विषमता से भरा पड़ा है संसारसमुद्र : 'वाकई संसार एक तूफानी सागर है' - इस विचार को हमें अपने हृदय में भावित करना चाहिये और तदनुसार जीवन का भावी कार्यक्रम निश्चित करना चाहिये । सागर में रहा प्रवासी उसे पार करने के नानाविध प्रयत्न करता है, ना कि उसमें सैर-सपाटा अथवा दिल बहलाव का प्रयत्न करता है । उसमें भी यदि सागर तूफानी हो तो, पार करने की उसे हमेशा जल्दी रहती है ! अत: हमें यह संकल्प दृढ़ से दृढतर बनाना चाहिये कि 'मुझे संसार - समुद्र पार करना ही है ।'
मध्यभाग : समुद्र का मध्य भाग (बीचों-बीच ) अगाध होता है कि उसकी सतह खोजे भी नहीं मिलती । यहाँ संसार का मध्य भाग यानी मनुष्य की युवावस्था/ यौवनकाल । जीव की यह अवस्था वाकई अगाध होती है, जिसका ओर-छोर पाना मुश्किल होता है। उसकी युवावस्था की अगाधता को सूर्य किरण भी भेदने में असमर्थ हैं। अच्छे-खासे तैराक भी समुद्र की अतल गहराई में खो जाते हैं, जिनका अता-पता नहीं लगता ।