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________________ गुजराती भाषा में उन्होंने लिखे हुए सवासौ गाथा का स्तवन, देढ़सौ गाथा का स्तवन, साढ़े तीन सौ गाथा का स्तवन, योगदृष्टि की आठ सज्झायें, द्रव्यगुण-पर्याय का रास... जैसी गम्भीर रचनायें भी पुनः पुनः मनन करने जैसी हैं। __ और, उनकी समग्र साहित्य साधना के शिखर पर स्वर्ण कलश सदृश शोभते हैं योग और अध्यात्म के उनके अनुभवपूर्ण श्रेष्ठ ग्रन्थ ज्ञानसार, अध्यात्मसार, अध्यात्मोपनिषद्, पातञ्जलयोगसूत्रवृत्ति, योगविंशिकावृत्ति और द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका वगैरह । उपाध्यायजी की निर्मल प्रज्ञा और आन्तर वैभव का आह्लादक परिचय पाने के लिए उनके इन ग्रन्थरत्नों का अवगाहन अवश्य करना चाहिये । उनके प्रसिद्ध-अप्रसिद्ध ग्रन्थों की सूची बहुत बड़ी है । विशेष जानकारी पाने की जिज्ञासा वालों को 'श्री यशोविजय स्मृतिग्रन्थ' और "यशोदोहन" वगैरह ग्रन्थ देखने चाहिये । ऐसे महान् ज्ञानी, उच्च कोटि के आत्मसाधक, संतपुरुष प्रतिभासम्पन्न उपाध्याय श्री यशोविजयजी की, उनके समकालीन विद्वानों ने 'कलिकाल केवली' के रुप में प्रशंसा की है। अपन भी उन महान् श्रुतधर महर्षि को भावपूर्ण हृदय से वंदना कर, उनकी बहायी हुई ज्ञानगंगा में स्नान कर निर्मल बनें और जीवन सफल बनायें । -भद्रगुप्तविजय
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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