SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४८ अनुभव करता है ! असीम आत्मस्वातंत्र्य की मस्ती में खोया रहता है ! ऐसी उत्कट निःस्पृह-वृत्ति पाने के लिए जीवन में निम्नांकित उपायों का अवलम्बन करना चाहिए ! • "मेरे पास सब कुछ है । मेरी आत्मा सुख और शान्ति से परिपूर्ण है । मुझे किसी बात की कमी नहीं । मेरी आत्मा में जो सर्वोत्तम सुख भरा हुआ है, दुनिया में ऐसा सुख कहीं नहीं । तब भला, मैं इसकी स्पहा क्यों करूँ? ऐसी भावना से निज आत्मा को भावित रखनी चाहिए । "मैं जिस पदार्थ की स्पृहा करता हूँ, जिसके पीछे दीवाना बन, रात-दिन भटकता रहता हूँ, जिसकी वजह से परमात्मा ध्यान अथवा शास्त्र-स्वाध्याय में मन नहीं लगता, वह मिलना सर्वथा पुण्याधीन है ! पुण्योदय न होगा तो नहीं मिलेगा ! जबकि उसकी निरंतर स्पृहा करने से मन मलिन बनता है! पाप का बन्धन और अधिक कसता जाता है ! अतः ऐसी परपदार्थ की स्पृहा से क्यों न मुख मोड़ लूँ ?" ऐसे विचारों का चिंतन-मनन करते हुए, जीवन की दिशा को ही बदल देना चाहिए। "यदि मैं परपदार्थों की स्पृहा करूँगा तो निःसंदेह जिनके पास ये हैं, उनकी मुझे गुलामी करनी पड़ेगी, दीर्घकाल तब उसका गुलाम बन कर रहना होगा ! उसके आगे दीन बन याचना करनी पड़ेगी । यदि याचना के बावजूद भी नहीं मिले वे पदार्थ तो रोष अथवा रूदन का आधार लेना पड़ेगा ! प्राप्त हो गये तो राग और रति होगी ! परिणामस्वरूप दुःख ही दुःख मिलेगा ! साथ ही यह सब करते हुए आत्मा-परमात्मा की विस्मृति होते देर नहीं लगेगी । संयम-आराधना में शिथिलता आ जाएगी और फिर पुनः पुनः भव चक्कर में फँसना होगा!" इस तरह जीवन में होनेवाले अगणित नुकसान का खयालकर स्पृहा के भावों का निर्मूलन करना होगा ! - जैसे भी सम्भव हो, जीवन में परपदार्थों की आवश्यकता को कम करना चाहिए ! पर-पदार्थों की विपुलता के बल पर अपनी महत्ता अथवा मूल्यांकन नहीं करना चाहिए, बल्कि उनकी अल्पता में ही अपना महत्त्व समझना चाहिए ! • सदा-सर्वदा नि:स्पृह आत्माओं से परिचय बढाकर उसे अधिकाधिक दृढ़
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy