SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चिन्तामणि', 'महामंत्र की अनुप्रेक्षा' एवं 'जिनवाणी का निर्झर' का प्रकाशन किया जा चुका है। इसी कड़ी में 'ज्ञानसार' रूपी पुष्प आपके समक्ष प्रस्तुत है। पूज्य उपाध्याय श्री यशोविजयजी विरचित 'ज्ञानसार' की विवेचना पूज्य आचार्य प्रवर श्री विजय भद्रगुप्त सूरिजी द्वारा की गई है । 'ज्ञानसार' आध्यात्मिक साहित्य जगत में एक अद्वितीय रचना है। यह पूज्य महोपाध्याय श्री यशोविजयजी की श्रेष्ठ कृतियों में से एक है। श्री चिंतामणि तीर्थ हरिद्वार के तीर्थमण्डल की भावना है कि ऐसा अनुपम साहित्य हर घर में पहुंचे व गुणीजनों के हृदय को चिर आनंद प्रदान करे । अस्तु । ___ बसंत पंचमी ट्रस्टीगण २३ अगस्त, २००९ चिंतामणि पार्श्वनाथ तीर्थ, हरिद्वार
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy