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________________ क्रिया ९५ अर्थ : क्रियारहित मात्र ज्ञान सचमुच किसी काम का नहीं । चलने की क्रिया के प्रति उदासीन, मार्ग जाननेवाला व्यक्ति भी इच्छित नगर नहीं पहुँच सकता विवेचन : दिल्ली से बंबई की दूरी तुम भलीभांति जानते हो। तुम्हें यह भी मालूम है कि दिल्ली से बंबई किस मार्ग से जाया जाता है। राजमार्ग तुम जानते हो और रेल्वे—मार्ग की जानकारी भी तुम्हें है । तुमसे यह भी छिपा नहीं है कि दिल्ली - बंबई का कितना किराया है। यह तो ठीक, हवाई मार्ग की सही जानकारी भी तुम्हें है । 1 लेकिन यदि तुम प्रवास की पूर्व तैयारी न करो, पदयात्रा आरम्भ न करो अथवा रेल्वे से प्रवास करने की क्रियारूप टिकट खरीद कर रेल में बैठने का कष्ट न करो तो भला, दिल्ली पहुँच पाओगे क्या ? नहीं पहुँचोंगे । अतः हमें गन्तव्य स्थान पर भले ही वह बंबई हो अथवा दिल्ली, क्रिया तो करनी ही होगी। सिर्फ मार्ग की जानकारी प्राप्त करने मात्र से इष्ट स्थान पर पहुँचा नहीं जाता । ज्ञान के आधार पर गति - क्रिया करनी ही होगी । तुमने मोक्ष - मार्ग की जानकारी हाँसिल कर ली। आत्मा पर छाये अष्टकर्मों को जान लिया, उन कर्मों के विच्छेदन की क्रिया भी अवगत कर ली, लेकिन अगर समुचित पुरुषार्थ, परिश्रम न करो तो जानकारी हाँसिल करने का कोई महत्त्व नहीं है। इससे समस्या हल होनेवाली नहीं है, ना ही बात बननेवाली है । इससे विपरीत अधिकाधिक हानि / नुकसान होने की ही सम्भावना है । मोक्ष - मार्ग के लिये आवश्यक क्रिया का त्याग कर यदि कोई जीवात्मा ज्ञान के बल पर ही मोक्ष प्राप्ति करना चाहता हो तो यह उसका निरा भ्रम है। एक प्रकार की कपोल-कल्पना है। मोक्ष-मार्ग के अनुकूल क्रियाओं की उपेक्षा करनेवाला मनुष्य ज्ञान - बल से मिथ्याभिमानी / घमंडी बन जाता है, संसारवर्धक क्रिया-कलापों में निरन्तर ओतप्रोत रहता है और स्व आत्मा को मलिन / कलंकित बनाता भवसागर की अनन्त गहराईयों में असमय ही खो जाता है । फलत: मौत की गोद में सदा के लिये सो जाता है । महत्त्वपूर्ण तथ्य तो यह है कि जीवात्मा के रोम-रोम में आत्मा की सत्
SR No.022297
Book TitleGyansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptavijay
PublisherChintamani Parshwanath Jain Shwetambar Tirth
Publication Year2009
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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