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क्रिया
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आवश्यकता है और सौ बार है । लेकिन उसकी आवश्यकता तभी महसूस होती है, जब भवसागर भीषण, रौद्र और तूफानी लगता हो । जब तक भवसागर प्रशान्त, सुखदायक एवं सुन्दर, अति सुन्दर दिखायी देता है, तब तक जीवात्मा को ज्ञान
और क्रिया का महत्त्व समझ में नहीं आता । जीवन में उसकी आवश्यकता का यथार्थ ज्ञान नहीं होता।
___ भवसागर से पार लगने और अन्य जीवों को पार लगाने हेतु यहाँ निम्नांकित पाँच बातें कही गयी हैं - (१) ज्ञानी :
जिस भवसागर को पार करना है, उसकी भीषणता की जानकारी लिये बिना पार उतरना सम्भव नहीं है । साथ ही, जिनके आधार से तिरना है, उन कृपानिधि परमात्मा और करुणामय गुरुदेव का वास्तविक परिचय प्राप्त किये बिना कैसे चलेगा ? जिसमें सवार होकर पार उतरना है, उस संयम-नौका की सम्पूर्ण जानकारी भी हाँसिल करना जरुरी है। साथ ही सागर-प्रवास के दौरान आनेवाली नानाविध बाधायें, विघ्न और संकट, उस समय अपेक्षित सावधानी, सुरक्षाव्यवस्था और आवश्यक साधन-सामग्री का ज्ञान भी हमें होना चाहिए । २. क्रियापर :
भवसागर पार उतरने के लिये देवाधिदेव जिनेश्वर भगवन्त ने जो क्रियायें दर्शायी हैं, उन्हें अंजाम देने के लिये सदा सर्वदा तत्पर होना जरूरी है। तत्परता का मतलब है-काल-स्थान और भाव का औचित्य समझ, हर सम्भव क्रिया करना । उसे करते हुए तनिक भी आलस्य, बेठ, अविधि अथवा उदासीनता न हो, बल्कि सदैव अदम्य उत्साह और असीम उल्लास होना चाहिये । ज्ञान, दर्शन, तप, चारित्रादि के आचारों का यथाविधि परिपालन होना चाहिये । हालाँकि भवसागर से पार उतरनेवाली भव्यात्माओं में यह स्वाभाविक रूप से होता है । ३. शान्त :
शान्ति... समता... उपशम की तो अत्यन्त आवश्यकता है। भले ही ज्ञान हो, क्रिया हो, परन्तु उपशम का पूर्ण रूप से अभाव है, तो पार लगना असम्भव