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________________ अज्ज वि तिरयणसुद्धा अप्पा झाएवि लहहिं इंदत्तं । लोयंतिदेवत्तं तत्थ चुआ णिव्वुदिं जंति ॥ ४१२ । सम्यक् आज भी (इस पंचम काल में भी) जो मुनि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और चारित्र की शुद्धता से युक्त हैं और आत्मा का ध्यान करते हैं वे इन्द्र अथवा लौकान्तिक देव के रूप में जन्म लेते हैं और उस रूप में अपनी उम्र पूरी करने के बाद मोक्ष प्राप्त करते हैं। जे पावमोहियमई लिंगं घेत्तूण जिणवरिंदाणं । पावं कुणति पावा ते चत्ता मोक्खमग्गम्मि ॥ ४१३ ॥ जिनकी बुद्धि पापकर्म के मोह में पड़ी हुई है वे मुनि का स्वरूप धारण करके भी पाप ही करते हैं । उन पापियों के लिए मोक्ष के दरवाज़े बन्द हैं। जे पंचचेलसत्ता गंथग्गाही य जायणासीला । आधाकम्मम्मि रया ते चत्ता मोक्खमग्गम्मि ॥४१४॥ जिनकी आसक्ति पाँच प्रकार के वस्त्रों (अण्डज, कर्पासज, वल्कल, चर्मज और रोमज) में है, जो परिग्रही हैं, याचना करते रहना जिनका स्वभाव है और जो पापकर्म में लिप्त हैं उनके लिए मोक्षमार्ग के दरवाज़े बन्द हैं। णिग्गंथमोहमुक्का बावीसरपरीसहा जियकसाया । पावारंभविमुक्का ते गहिया मोक्खमग्गम्मि ॥ ४१५ ॥ at परिग्रह रहित और मोहमुक्त हैं, बाईस परिषहों को सहते हैं और क्रोध आदि कषायों को जीत चुके हैं वे ही मुनि मोक्षमार्ग में स्वीकार्य हैं। 107
SR No.022293
Book TitleAtthpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkundacharya, Jaykumar Jalaj, Manish Modi
PublisherHindi Granthratna Karyalay
Publication Year2008
Total Pages146
LanguagePrakrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size9 MB
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