________________
सविवरणे मूलशुद्धि प्रकरणे
संवरवि असेसु वि सुलसगेहिं, गउ अम्मडु हरिसिउ निययदेहि, पविसरइ निसीहिय जा करेवि, ता सुलस समुट्ठिय इय भणेवि, 'अहु सगउ सागउ तुह गुणड !, महधम्मबंधु ! जिणधम्मसड !, पक्खालइ तो सा तस्स पाय, अइवच्छल जह किर निययमाय, दक्खालइ तो गिहचेइयाई, वंदेइ सो वि विहिपुव्वयाई, उवविसइ दिन्नपवरासणम्मि, अइहरसिं निब्भर नियमणम्मि, सो जंपइ ‘साविएँ ! चेइयाई, वंदाविय सासय-ऽसासयाई', तो लायवि सिरु कर भूमिवट्ठि, सा वंदइ मणि कयगरुयतुट्ठि, सो पुण वि पयंपइ विहसियंगु, जिणसासणि निच्चल अंतरंगु, 'तुहं धन्न सपन्न कयत्थ एक्क, तुहु जम्मु सहलु तुह पणयसक्कं, जिं मणुय-तिरिक्ख-सुरा-ऽसुराण, मज्झट्ठिउ तेयसुभासुराण, तुह पुच्छइ वत्त जिणिंदु वीरु, मारारिवीरदलणेक्कवीरु', तं सुणवि सुलस पुलइयसरीर, संथुणइ 'जिणेसरु जयहि वीर !, मिच्छत्तमेहनासणसमीर !, जय मोहमल्लबलमलणधीर !, .. जय पणयसुरा-ऽसुरइंद-चंद !, चलणंगुलिचालियगिरिवरिंद !, जय केवलकलियभवस्सरूव !, जय वीर ! तिलोयऽब्भहियरूव !', इय थुणवि सुलस भूलुलियसीस !, पुणु पुणु जिणु वंदइ गयकिलेस, तो पुण वि पयंपिय सुलस तेण, सविसेसपरिक्खवियक्खणेण, जह 'किर बंभाई पुरवरस्स, दारेसु धम्मु अक्खहि जणस्स, कोड्डेण वि सुंदरि ! ताण पासि, किं कारणु जं किर नवि गया सि ?', सा भणइ 'सुहय ! किर कांइ इम्व, उल्लवहि अईवअयाणु जेम्व ?,
जिणु वीरू नमेविणु कह व तेसु, मणु मज्झु घुलइ अघडंतएसु, जओ भणियंजो एरावयगंडयलगलियमयरंदपरिमलग्घविओ । सो विहसियं पि न रमइ पिचुमंदं महुयरजुवाणो ॥१॥ भरुयच्छकच्छवच्छुच्छलंतमयरंदगुंडियंगस्स । भमरस्स करीरवणे मणयं पि मणं न वीसमइ ॥२॥
१. सं० वा० सु० अह ॥ २. सं० वा० सु० वंदेहि ॥ ३. ला० 'हरसिहं नि' ॥ ४. सं० वा० सु० कोडेण॥