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सुलसाख्यानकम्
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चउराणणु पउमासणि निविदु, धयरट्ठगमणु चउबाहला, बंभक्खसुत्त-जड-मउडजुत्तु, सावित्तिपत्तिपरिसंपउत्तु, जा कहइ धम्मु ता पुरजणोहु, आवज्जिउ किर बंभाणु एहु, सुलस वि हक्कारिय सहियणेण, डंभो त्ति न गय निच्चलमणेण, तो बीयदिवसि दाहिणदिसाए, गरुडासणु सहुँ लच्छीवराए, गय-संख-चक्क-सारंगपाणि, लच्छीहरु हुवहु कवडखाणि, तेणावि न रंजिअ सुलस जाम्व, हू तइयदिवसि पच्छिमहि ताम्व, ससिसेहरु भूइविभूसियंगु, वसहासणु गोरिकयद्धसंगु, डमरुय-खट्टंग-तिसूलहत्थु, गणपरिवुडु अक्खइ धम्मसत्थु, जा तेत्थु वि नागय गुणविसाल, ता उत्तरदिसिहिँ करेइ साल, रयणाइविनिम्मिय तिन्नि सार, कविसीसय-तोरण-वार फार, मज्झम्मि ताण सीहासणम्मि, कंकेल्लितलम्मि समुज्जलम्मि, तहिँ उवरि निविट्ठउ चउसरीरु, जिणु कम्मसत्तुनिट्ठवणवीरु, परिनिम्मियअठ्ठसुपाडिहेरु, दंसियउवसन्ततिरिक्खवेरु, जा अक्खइ धम्मु चउप्पयारु, जइ-सावयभेइं अइसुतारु, तं सुणवि विणिग्गउ पुरह लोउ, रोमंचिउ भणिएँ ण्हाउ धोउ, सुलसा वि भणाविय अम्मडेण, 'निद्दलहि पाउ जिणवंदणेण,' तो सुलस वुत्तु 'न वि ऍहु जिणिंदु, सिरिवीरु पणयतियसिंद-विंदु, चउवीसमु जो तित्थंकराहं, कम्मट्ठसत्तुबलखयकराहं', तो पभणिय तेण 'अईवमुद्धि !, पणुवीसमु जिण एँह होइ सुद्धि !', सा भणइ 'न होइ कया वि एउ, पणुवीसमु जं किर होइ देउ, कावडिउ को वि जणवंचणत्थु, इय अक्खइ जिणवरधम्मसत्थु', तिं पभणिय मं करि एत्थु भेउ, सासणह पहावण एहु होउ', सा भणइ ‘पभावण न वि य एह, अलिएणोहावण इह अछेह', इय जाम्व न सक्किय, चालिवि सत्तिय, सुलस अमडु चिंतेइ तउ । सिरिजिणमुणिभत्तहिँ, दढसम्मत्तहिँ, जुतु पसंसणु जिणेंण कउ ।।१५।।
१. सं० वा० सु० सुत्त-चउमुहें हि जुत्तु ॥ २. सं० वा० सु० हक्कारिउ ॥ ३. ला० जाव ॥ ४. ला० ताव ॥ ५. ला० तावुत्तर ॥ ६. णधीरु ॥ ७. सं० वा० सु० पणवीसमु एह साहावसुद्धि ॥८. सं० वा० सु० तं पणमिय।