________________
सविवरणे मूलशुद्धि प्रकरणे
तो परिहरामि' चिंतेवि एउ, गय जणयह पासि करेवि वेउ, अक्खइ नीसेसु वि तासु केज्जु, मई ताय ! विसज्जि झडत्ति अज्जु, तो तेण विसज्जिय, हुय सा अज्जिय, बंभचेर-तव-नियमधर । गुणरयणिहि मंडिय, आगमि चड्डिय, चंदणउज्जपासम्मि वर ।।११।।
(१२) एत्तो य मग्गि सेणिउ तुरंतु, वच्चइ जेट्ट त्ति समुल्लवंतु, सा पभणइ 'न वि हउं जेट्ट सामि !, तेहु भगिणि लहुय चेल्लण भवामि !,' तो जंपइ सेणिउ 'सव्वजेट्ट, तुहु पिययम ! महु गुणगणवरिट्ठ !', तो चेल्लणलाहिँ हि हिट्ठचित्तु, वरमित्तविणासिं सोयतत्तु, चेल्लण वि भगिणिवंचणविसन्न, सेणियवरलाहिं अइपसन्न, संपत्तु नरिंदु कमेण गेहि, तहिँ चेल्लण मेल्लवि क्डभडेहिं, परिवारिउ नागह गेहि पत्तु, सुयमरणु कहइ अंसुय मुयंतु, तं सुणवि नागु सहुँ परियणेण, अक्कंदइ दुखिउ इय मणेण, 'हा पुत्त ! पुत्त ! कहिँ तुम्हि पत्त, जमगेहि अयंडे वि जीय चत्त, हा दारुणदुक्खमहनवम्मि, हउं काइँ खित्तु विहि ! दुत्तरम्मि, हा हा निरु निम्षिण ! अइअणज!, एउ काइँ विहिउ पइँ विहि ! अलज !, जं एक्कु कालु मह नंदणाहं, हिउ जीविउ अरिबलमद्दणाहं, मई जाणिउ किर विद्धत्तणम्मि, पालेसहिँ सुय हरिसिउ मणम्मि, तं सव्वु निरत्थउं मज्झ जाउ', इय विलवइ सो भूलुलियकाउ, निवडिय सुलसा वि य धरणिवट्टि, गयबंधण जह किर इंदलट्ठि, आसासिय परियणि रुयइ दीणु, 'सइँ कियउं एउ मई मइविहीणु, जइ भग्ग ! अलक्खण हउं अपुन्न, समयं गुलियाउ न खंतऽवुण्ण, तो मज्झ एउ नवि दुक्खु हुंतु, समगं सुयमरणसमुब्भवंतु, हा पुत्त ! पुत्त ! कसु निययवयणु, तुम्हाहँ मरणि दंसेमु दीणु, हा एक्कु कालु हउँ किय अणाह, कसु पुरउ पुत्त ! मेल्लेमि धाह ?',
इय ताहं रुअंतहँ, दुहसंतत्तहँ भणइ अभउ एरिसु वयणु । १. ला० ता ।। २. ला० कज्ज ।। ३. ला० अज ।। ४. ला० मवर ।। ५. ला० तहि ।। ६. ला० 'लाभिं हि ।। ७. ला० बहुभडेहिं ॥ ८. ला० तुम्हाहि ॥