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________________ सुलसाख्यानकम् २ तो तीएँ जुत्त रोमंचियंग, आरुहइ जीम्व रहि रूवचंग, ता भइ जेट्ठ 'मह रयणपुन्न, वीसरिय करंडी बहुसुवन्न, आज साहु ! महत्थ, खणु एक विमालह ताव एत्थ', गय जाव जेट्ठ इत्तिउ भणेवि, ता वुत्तु नराहिवु कम नमेवि, सुलसासुएहिँ ‘अरिगेहि देव !, चिरु कालु विलंबु न जुत्तु एव,' तं निसुणवि सेणिउ वलिउ झत्ति, चेल्लण गिण्हेविणु रूववंति, अह जेट्ठ पत्त एत्थंतरम्मि, दुयवियड सुरंगहि वरमुहम्मि, तंत्रनिवि विणु विमद्दि, धाहाविउ तीऍ महंतसद्दि, 'हा मुट्ठ मुट्ठ दे धाह धाह, मह भगिणि हरिज्जइ ऍह अणाह', तंव कोफुरंतउड्डु, करघायवियारियभूमिवड्डु, ६९ सन्नद्धउ चेडयराउ जाव वीरंगउ भडु विन्नवइ ताव, “पहु ! खेउ कहिँ किं एत्थ कज्जि ?, आएसु देहि लहु मई विसज्जि', वीसज्जिउ तो निवचेडएण, सो दिन्ननिययकरबीडएण, लहु मज्झि सुरंगहि जाम्व जाइ, ता पेच्छइ रह ते रविहि नाइ, कमसंठिय नागह पुत्त तेसु, असुर व्व नियच्छइ नं सुरेसु, अह एक बाणु मेल्लेवि तेण, ते मारिय भड वीरंगएण, संकिन्नसुरंगमुहम्मि जाव, बत्तीस वि रह अवणेइ ताव, गउ सेणिउ लंघवि दूरदेसु, इयरो वि वलिवि गउ जहिँ नरेसु, साहेइ असेस वि तस्स वत्त, पणमंतसीसु जा जेंव वित्त, धूयावहाीिँ दूमिउ नरेसु, सेणियभडमारणि हॅू सतोसु, जेट्ठ वि मणि चिंतइ तं सुणेवि, निव्विन्नकाम भवगुण मुणेवि, 'सि सि रत्थु भोगाहँ जेत्थु, वंचइ नियभगिणि वि इय निरत्थु, धिसि धिसि मलमुत्तसमुब्भवाहं, कामाहँ विहियबहुपरिभवाहं, धिसि धिसि खणमेत्तसुहावहाहं, कामाहँ नरयपुरसुप्पहाहं, धिसि सि पज्जं दुहाऽऽकराहं, कामाहँ अथक्कविणस्सराहं, सिधिसि गुणसालमहानलाहं, कामाहँ विणासियतणुबलाहं, एयाण उवरि जो रइ करेइ, सो दुक्खहैं अप्पउं धुरि धरेइ, १. ला० जाव ॥ २. ला० वृत्त नराहिव ॥ ३. ला० चिरका ॥ ४. ला० धाहाविअ ॥ ५. ला० एत्थु ।। ६. ला० मय ।। ७. सं० वा० सु० 'करपीड' ।। पु० 'करवाड ।। ८. ह्रस्वतोष:, भूतः स तोषो वा ।
SR No.022286
Book TitleMulshuddhi Prakaranam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
PublisherShrutnidhi
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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