SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सविवरणे मूलशुद्धि प्रकरणे तं सुणवि जिणागमभावियाए, सा वुत्त जेठ्ठवरसावियाए, 'जह वत्थु किं पि रुहिरेण लितु, हलें ! रुहिरेणेव य धोवियतु, नवि सुज्झइ तह तुह धम्मि मुद्धि !, पावेण विणिम्मिउ अइअसुद्धिं, तं कम्मु विसुज्झइ पावि केव, सोयाइविणिम्मविएण चेव ?', एमाइवयणबहुवित्थरेण, सा विहिय निरुत्तर तक्खणेण, तो कयमुहबहुवग्घाडियाहिं, पहसन्तिहिँ जेट्ठह चेडियाहिं, कंठम्मि घित्तु रायंगणाओ, सा धाडिय वलिय वरंगणाओ, पव्वाइय बहुविहकूडवंत, तो चिंतइ कोविं धगधगेंत, 'पंडित्तणगव्विय एह पाव, ससवक्कइ पाडमि दुट्ठभाव,' तो जेट्ठरूवु फलहइ लिहेवि, गय सेणियरायह पासि लेवि, दक्खालइ कयउचिओवयार, तं रायह नियकज्जम्मि सार, निव्वनिवि तं अणुरायजुतु, पव्वाई भणइ वियारपत्तु, 'किं अस्थि विविहरयणायरम्मि, एयारिसु रूवु रसायलम्मि?', सा भणइ 'न सक्कइ कु वि लिहेवि, तहिँ रूवहु ए(?प)हु ! आयरसु को वि (?), ऍह चेडयरायह कन्नधूय, मइ अक्खिय निव ! तुज्झाणुरूव', इय जंपवि हरिसभरंतगत्त, पव्वाई नियठाणम्मि पत्त, राउ वि तसु रूविं, सल्लसरूविं, मुच्छिउ निच्चलु हुयउ किह । निप्पंदसलोयणु, निच्चलचेयणु, परमझाणि वरजोइ जिह ।।८।। एत्वंतरि अभयकुमारु पत्तु, निय जणयह जो निच्चं पि भत्तु, पणमेवि अजाणिउ जं निविठ्ठ, ता जाणिउ जणयह चित्तु नछु, पय सीसि विघट्टिवि मइविसालु, तो पुच्छइ जाणियदेसकालु, 'चिंतावरु दीसह काइँ अज्जु ?, साहेह जेण साहेमि कज्जु', पच्चागयचेयणु तो नरेसु, अभयह तं साहइ निरवसेसु, अभएण वुत्तु मा करहि खेउ, पेसिजउ दूउ अकालखेउ, १. सं० वा० सु० वुत्ति ॥ २. ला० पाविनेव ॥ ३. कृतमुखबहुहास्यालापाभिः ।। ४. ला० चलिखरं ।। ५. ला० पव्वाई ब ।। ६. ला० आरिसुकोवि ।। ७. श्रेष्ठयोगी॥ ८. सं० वा० सु० दीसहु ।। ९. ला० अज ।। १०. ला० कज ।। ११. सं० वा० सु० मं ।।
SR No.022286
Book TitleMulshuddhi Prakaranam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
PublisherShrutnidhi
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy