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________________ ६४ सविवरणे मूलशुद्धि प्रकरणे होहिंति तुज्झ बत्तीस पुत्त, पर किंतु समाऽऽउय संपत्त, जइ भिन्न भिन्न भक्र्खेत ताउ, तो हुत नियाऽऽउय तुह सुया उ', सा भइ 'जीवि जं बद्धु जेंव, तं कम्मु तियस ! परिणमइ तेंव, कयकम्मह नवि संसारि को वि, पडिमल्लु होइ सुविक्खणो वि तो हरहि पीड मेहु तणुतवंत, जइ सज्झ तुज्झ सुर ! धम्मवंत !,' सारंगवणु तो तीऍ अंगि, गउ पीड हरेविणु सग्गि वेग, सुलस वि गयवेयण, धम्मपरायण, सुहिण गब्भु परिवह थिर । अहवा सुरमहियहि, परियणसहियहि, काइँ खूंणु तहिं होइ किर ? ।।५।। (६) नवमासें हि अह पडिपुन्नएहिं, अद्धट्ठमदिवससमन्निएहिं, सा पसवइ सुहनक्खत्तलग्गि, आसन्नइ पडिचारियहँ वग्गि, समगं चिय वर बत्तीस पुत्त, नीसेससुलक्खणसंपउत्त, नियकंतिपयासियगब्भगेह, नं मिलिय पओयणि तियसनाह, नागु वि वद्धाविउ चेडियाए, रहसेण पियंकरिनामियाए, तोसेण दिन्नु तो तीऍ दाणु, आइसइ महूसवु अप्पमाणु, अवि य घुम्मंतरुंदमद्दलो, नच्चंतनारिगुंदलो, कीरंतजक्खकद्दमो, दीसन्तवेसविब्भमो, वज्र्ज्जततूरसद्दओ, सुव्वंतगेयसद्दओ, धावन्तदासि दासओ, घिप्पंतसीसवासओ, दिज्जं तणेयदाणओ, पूइज्जमाणजाणओ, उब्भिज्जमाणजूयओ, पढंतभट्ट-सूयओ, गिज्जंतसव्वमंगलो, आविंतबंधुमंडलो, रोलंतसूयमाइओ, माणिज्जमाणदाइओ, कीरन्तदेवपूयणो, मुच्वंतगुत्तिबंधणो, पूइज्जमाणसंघओ, दिज्जंतखंडसहघओ, तुप्पंतसाहुपत्तओ, भुज्जंतचारुभत्तओ, आविंतअक्खवत्तओ, दिज्जंतपूयपत्तओ, त्ति इय विहवविमद्दि, जणसम्मद्दि, वद्धावणउं करेवि ऍहु । देवय पूएविणु, गुरुहु नमेविणु, नामुच्चारणु कुणइ लहु ।।६।। १. ला० होंत ॥ २. ला० मह ॥ ३. ला० 'ण देवि सो तीऍ ॥ ४. सं० वा० सु० 'तूरकंदओ || ५. ला० पु० सत्यमं ॥ ६. ला० खंडसंघओ ॥
SR No.022286
Book TitleMulshuddhi Prakaranam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
PublisherShrutnidhi
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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