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________________ ६२ सविवरणे मूलशुद्धि प्रकरणे किं व बालकवि हियइ खुडुक्कइ ?, किं व मरणु आसन्नउं ढुक्कइ ?, जइ अइरहसु नाह ! नवि किज्जइ, तो ऍउ कज्जु मज्झु साहिज्जई', तं निसुणेप्पिणु, ईसि हसेप्पिणु, नागरहिउ पडिभणइ तउ । 'तं कज्जु न किं पि वि, अइरहसं पि वि, जं न कहिज्जइ कंति ! तउ ।।३।। पर किंतु न नंदणु अत्थि तुज्झु, ऍउ हियइ खुडुक्कइ मज्झु गुज्झु', पडिभणइ वयणु तो सुलस एउ, 'जिणवयणवियड्ड वि काइँ खेउ ? किर करहि नाह ! नवि सुऍण कोइ, रखिज्जइ नरइ पडंतु जोइ, नवि रक्खइ वाहिवियारु इंतु, सुउ सामि ! गुणड्ड वि रूववंतु, किं तणउ देइ सग्गा-ऽपवग्गु ?, पर होइ नाह ! संसारमग्गु', 'जाणामि सयलु' तो पिउ भणेइ, ‘पर लच्छि अपुत्तह राउ लेइ, परिवारु सयलु पिएँ ! दिसि घडेइ, नियबंधु वि अन्नह संघडेइ' तं सुणवि पयंपइ ‘मइविसाल !, मुहं अन्न का वि परिणेहि बाल,' सो भणइ 'विढप्पइ जइ वि रज्जु, महु अन्न भज किंचि वि न कज्जु, जइ होइ पुत्तु कह कह वि तुज्झु, तो चित्तु संयन्नउं होइ मज्झु', जाणेवि विनिच्छउ पियह भज, हुय तियसाऽऽराहणि झत्ति सज्ज, सुविसुद्धबंभ भूमिहिँ सुवेइ, जिणपडिमह पूयहु कारवेइ, पडिलाहइ भत्तिएँ समणसंघु, आयंबिलाइतउ तवइ सिग्घु, हरिणेगमेसि सुरु मणि धरेइ, नियमट्ठिय अन्नु वि बहु करेइ, जा ठिय साऽणुट्ठाणि महल्लइ, ता हरिणाऽऽणणआसणु हल्लइ, तं पेक्खेविणु चित्ति चमक्किउ, अवहि पउंजइ चवणाऽऽसंकिउ, तो परियाणिवि सुलसहि चेट्टिङ, सुरसेणावइ झत्ति समुट्ठिउ, उत्तरवेउव्विउ सविसेसिं, विउरुव्ववि संचल्लिउ रहसिं, अवि यफुरंतमउडभूसणो, रणंतकिंकिणीसणो, चलंतचारुकुंडलो, निबद्धतेयमंडलो, ललन्ततारहारओ, लुलंतवत्थधारओ, सुरम्मतालमालओ, विसट्टमुंडमालओ, १. ला० दिस ।। २. ला० सइत्तउ ।।
SR No.022286
Book TitleMulshuddhi Prakaranam Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmdhurandharsuri, Amrutlal Bhojak
PublisherShrutnidhi
Publication Year2002
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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