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सविवरण मूलशुद्धि प्रकरण द्वितीय स्थानके
कुवियस्स आउरस्स य वसणं पत्तस्स रागरत्तस्स । मत्तस्स मरंतस्स य सब्भावा पायडा हुति' ।।५६।।
त्ति परिभाविऊण णिमंतिओ कोडुबियलोगो । पाइओ सव्वो वि मज्जं, न य अप्पणा पियइ। तओ जाव सव्वे मत्ता ताव मयपराहीणो व्व तेसिं भावपरिक्खणत्थं जंपिउमाढत्तो, अवि य
दो मज्झ धाउरत्ताओ कंचणकुंडिया तिदंडं च ।
राया मे वसवत्ती, एत्थ वि ता मे होल वाएहि ।।१६० ।। अण्णो असहमाणो भणइ
गयपोययस्स मत्तस्स उप्पइयस्स जोयणसहस्सं ।
पए पए सयसहस्सं, इत्थ वि ता मे होल वाएहि ।।१६१।। अन्नो भणइ
तिलआढयस्स उत्तस्स निप्फण्णस्स बहुसइयस्स ।
तिले तिले सयसहस्सं, इत्थ वि ता मे होल वाएहि ।।१६२।। अन्नो भणइ
नवपाउसम्मि पुण्णाएँ गिरिनइयाएँ सिग्यवेगाए ।
एगाहमहियमित्तेणणवणीएणपालिंबंधामि, इत्थ वितामे होल वाएहि॥१६३॥ अण्णो भणइ
जच्चाण णवकिसोराण, तदिवसेण जायमित्ताण ।
केसेहिं नहं छाएमि, इत्थ वि ता मे होल वाएहि ।।१६४।। अण्णो भणइ
दो मज्झ अत्थि रयणाणि, सालपसूई य गद्दभिया य ।
छिन्ना छिन्ना वि रुहंति, इत्थ वि ता मे होल वाएहि ।।१६५।। अन्नो भणइ
सयसुकिलो णिच्चसुयंधो, भज अणुव्वय णत्थि पवासो । - निरिणो य दुपंचसओ, इत्थ वि ता मे होल वाएहि ।।१६६ ।।
१-७. सं० वा० सु० वाएह ॥