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________________ संजमपोसकए च्चिय, जइ जइदाणं कहं तयट्ठाउ। एमेव पुढविकायाइ-हिंसणं होइ जुत्तं ति ॥ २८३९ ॥ "संथरणम्मि असुद्धं, दोण्ह वि गिण्हंतदितयाणऽहियं । आउर-दिटुंतेणं, तं चेव हियं असंथरणे" ॥ २८४०॥ चोरहरिओवहितं, गाढगिलाणत्तमोमवत्तित्तं । एमाई अण्णं पि हु, अववायपयं पडुच्च पुणो ॥ २८४१॥ वत्थाऽसणाऽऽइयाणं, ओसहभेसज्जमाऽऽइयाणं च । जइ सव्वोवाएहि, अहागडाणं न संपत्ती ॥ २८४२॥ तो कीयगडाऽऽईणि वि. संपाडेज्जा हसपरसामत्था । अह अण्णत्तो तस्सत्ति-संभवो नेव से अस्थि ॥ २८४३॥ संपाडेज्जा इय अंतरम्मि, साहारणेण सो सम्मं । साहू वि ताणि गिण्हइ, छड्डुणचित्तो अवण्णाए ।। २८४४॥ जं उस्सग्गनिसिद्धाई, जाई दव्वाणि संथरे मुणिणो । कारणजाए जाए, सव्वाणि वि ताणि कप्पंति ॥ २८४५॥ चोयग आहजं चिय पए निसिद्धं, तं चिय जइ कप्पई पुणो तस्स । एवं होइ अणवत्था, न य तित्थं नेय सच्चं तु ॥ २८४६॥ उम्मत्तवायसरिसं खु, दंसणं न विय कप्पऽकप्पं तु । अह ते एवं सिद्धी, न होज्ज सिद्धी उ कस्सेवं ॥ २८४७॥ आयरिय आहन वि किंचि अणुण्णायं, पडिसिद्धं वा वि जिणवरिंदेहिं । एसा ह तेसिमाऽऽणा, कज्जे सच्चेण होयव्वं ॥ २८४८॥ किंचदोसा जेण निरुब्भंति, जेण खिज्जति पुव्वकम्माइं। सो सो मोक्खोवाओ, रोगाऽवत्थास समणं व ॥ २८४९॥ उज्जुयमग्गुस्सग्गो, अववाओ तस्स चेव पडिवक्खो। उस्सग्गा विणिवइयं, धरेइ सालंबमऽववाओ ॥ २८५०॥ धावंतो उच्चाओ, मग्गण्णू किं न गच्छति कमेण । किं वा मउई किरिया, न कीरई असहओ तिक्खं ॥ २८५१॥ उण्णयमऽवेक्ख निण्णस्स, पासिद्धी उण्णयस्स निण्णाओ। इय अण्णोण्णपसिद्धा, उस्सग्गऽववाय दो तुल्ला ॥ २८५२॥ जावइया उस्सग्गा, तावइया चेव होंति अववाया। जावइया अववाया, उस्सग्गा तत्तिया चेव ॥ २८५३॥ सट्ठाणे सट्ठाणे, सेया बलिणो य होंति खलु एए। सट्ठाणपढाणा य, होति वत्थूउ निष्फण्णा ॥ २८५४॥ संथरओ सट्ठाणं, उस्सग्गो असहुणो परढाणं । इय सट्ठाण परं वा, न होइ वत्थु विणा किंचि ॥ २८५५ ॥ अववाओ वि ठियस्स ह. गीयस्स य पट्रकारणे नेओ। अलमइपसंगभणणेण, पत्थुयं चेव अह भणिमो ।। २८५६ ॥ सुधवसणाऽऽइलाभे, चएज्ज साहू असुद्धए विहिणा। पगुणत्ते आलोयइ, असुद्धमऽण्णाइ जं भुत्तं ॥ २८५७॥ इय जह साहुदारं, समणीद्दारं पि तह वियाणेज्जा । नवरं इत्थित्ताओ, तासिमऽवायाण बहुलत्तं ॥ २८५८॥ परिपिक्कसाउफलभर-बदरिसमाओ हवंति अज्जाओ। गुत्तिवइपरिगयाओ वि, सव्वगम्माउ पयईए ॥ २८५९॥ ता ताण परमजत्तेण, सव्वओ निच्चरक्खणीयाण । जइ पच्चणीयदुस्सील-लोयवसओ भवेऽणत्थो ॥ २८६०॥ ता साहारणदव्व-प्पयाणविहिणा वि सयमऽसामत्थे । कुज्जा संजमपच्चूह-कारिविद्धंसणं सम्म ॥ २८६१॥ भणियं समणीदारं, सावगदारं भणामि तहियं च । धम्माणुरत्तचित्तो, धम्माऽणुट्ठाणनिरओ य ॥ २८६२॥ जइ कहवि गुणपहाणो, सुसावओ वित्तिदुब्बलो होइ । अत्थि य वणिक्कला से, दविणविणासी य जइ नो सो ॥ २८६३ ॥ ताहे साहारणदव्वओ वि, काऊण कं पिहु ववत्थं । ववहारनिमित्तं तस्स, मूलरासिं समप्पेज्जा ॥ २८६४॥ अह निविण्णाणो तह वि, अद्धपायाऽऽइ देज्ज से अहवा। जइ नो वसणोवहओ न, कलहणो नेय पिसुणो य ॥२८६५ ॥ करकच्छाऽऽइस सद्धो, पवण्णदक्खिण्णविणयसारो य। तत्तो कम्मकरंतर-ठाणे सो च्चिय धरेयव्वो ॥ २८६६॥ समधम्मवत्तिणो वि हु, तव्विवरीयस्स धारणे नियमा। संभवइ अप्पणो पव-यणस्स खिसापयं लोए ॥ २८६७॥ एवं सावगदारं व, साविगादारमऽवि वियाणेज्जा । सविसेसमऽह विहेया, तच्चिंता अज्जियाणं व ॥ २८३८॥ एवं च कुणंतेणं, तेणं जिणसासणस्स धीरेणं । अव्वोच्छित्तिनिमित्तं, परमपयत्तो कओ होइ ॥ २८६९॥ अहवाएवं विहिए विहियं, सम्मत्ताऽऽइगुणपक्खवाइत्तं । सव्वण्णुसासणं पि य, पभावियं होइ तेणेव ।। २८७०॥ अविभावियसपरजणो, अणविक्खियसरिसजाइउवयारो। सहधम्मयरा मह बंधव त्ति निच्चं विचितितो ॥ २८७१॥ साहम्मियाण सड्ढो, करेइ संसुमरणं पगरणेसु । संभासणं च दिट्ठाण, पूयणं पूगमाईहिं ॥ २८७२॥ ८४
SR No.022285
Book TitleSamveg Rangshala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh
Publication Year2009
Total Pages378
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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