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नमिरनरिंदामरमउड-लग्गरयणप्पहापहासिल्लं । चक्कधरसुरपहुत्तं पि, मोक्खकंखी न कंखेज्जा
॥ २२१०॥ सारीरमाणसाऽणेग-तिक्खदुक्खोहखोहपउराओ। गुत्तिट्ठिओ व्व मुत्ति, चिन्तेज्जा पयइभीमभवा
॥ २२११॥ दळूण य दुक्खत्ते, तद्दुक्खाऽऽलिगिओ व्व सव्वंगं । करुणापहाणचित्तो, दीणाऽऽणाहेऽणुकंपेज्जा
॥ २२१२॥ जीवाऽजीवाइसमत्थ-वत्थुवित्थारमऽवितहं सम्मं । मण्णेज्ज जिणाणाए, सम्मत्तविसुद्धिमिच्छंतो
॥ २२१३॥ कामो कोहो लोहो, हरिसो माणो मओ य इयरूवं । दरियाऽरिछक्कमन्तर-मऽलद्धपसरं सया कुज्जा ॥ २२१४॥ सव्वाओ वि किरियाओ, किलिट्ठचित्तस्स होंति विहलाओ। तस्साफल्लकए ता, सया विसुद्धं धरेज्ज मणं ॥ २२१५ ॥ विसपरिभावियधारा-करालकरवालतच्छियंऽगो व्व । संजायइ जीए परो, न तं गिरं कह वि भासेज्जा ॥ २२१६॥ न कयाइ कुलप्पसूओ, सुहलेसविमोहिओ महासत्तो। खणभंगिसरीरेणं, किलिट्टचेट्रं अणट्रेज्जा
॥ २२१७॥ तहा - चिन्ताऽणंतरसमकाल-मेव संपज्जमाणसयलत्थं । वीरस्स धरापहुणो, रज्जं पि हु भुंजमाणस्स
॥ २२१८॥ धम्माऽभिमुहा चिन्ता, सम्मं संवेगभावियमइस्स । संसारसरूवविभा-विरस्स एवंविहा होज्जा
॥ २२१९ ॥ हद्धी सव्वंगं पि हु, सया वि सावज्जजीविणो मज्झ । संसारसरणकारण-वावारपरायणमणस्स .
॥ २२२०॥ नणु होही तं किं पिहु, भविस्सवरिसं रिऊ व सा काऽवि। सो मासो पक्खो वा, तमऽहोरत्तं अहव दिवसो ॥ २२२१॥ दिवसे वा स मुहुत्तो, तम्मि खणो अहव को वि सो वारो । वारे तं नक्खत्तं, जत्थाऽहं विइयपरमऽत्थो ॥ २२२२॥ संकामिऊण पुत्ते, रज्जधुरं धीरपुरिसपण्णत्तं । सव्वण्णुपणीयाऽऽणाए, पारतंतं परिवहंतो
॥ २२२३॥ संवेगगरुयगीयऽत्थ-सुकिरियाणं गुरूण पयमूले। पडिवज्जिऊण दिक्खं, निरवेक्खो सव्वसंगेसु
॥ २२२४ ॥ छटुट्ठमदसमदुवालसाऽऽइ-विविहेहिं तवविसेसेहिं । संलिहियऽप्पा तह दव्व-भावसंलेहणविहीए ॥ २२२५ ॥ वोसट्ठचत्तदेहो, निबद्धपउमाऽऽसणो गिरिसिलाए । थाणुमईए परिजुत्त-हरिणकयकायकंडुयणो
॥ २२२६ ॥ सव्वाऽऽहारच्चाई, जहट्ठियाऽऽराहणाविहाणेण । पंचनमोक्कारपरो, पाणच्चायं करिस्सामि
।। २२२७॥ नवरं नो जावऽज्जवि, लभामि पव्वज्जमऽकयपुण्णोऽहं । ता सगिहे च्चिय वसहिं, दाउं सेवेमि मुणिणो त्ति ॥२२२८ ॥ जुत्ता य इमा चिन्ता, विसेसओ वसहिदाणविसयम्मि । जं सेसदाणऽविक्खाए, वसहिदाणं चिय पहाणं ॥ २२२९ ॥ वसहिअलाभे हि मुणीण, दाउमऽणवट्ठियाण न तरंति । अत्ताऽणुग्गहहेडं, गिहिणो भत्ता वि भत्ताऽऽई ॥ २२३०॥ न य भेसज्जं न य ओसहं च, नो कंबलं न वत्थं च । फासुयमऽकयमऽकारिय-मऽणणुमयं नेव पायं पि ॥ २२३१ ॥ नो पायपुंछणं डंडगं च मइमन्तयं विणेयं च । सत्थं पोत्थयमऽण्णं पि, साहुजणजोग्गमुवगरणं
॥ २२३२॥ दाउं पारेन्ति न सुगुरु-सेवणं नेव तव्वयणसवणं । काउं खमंति के वि हु, भववासविरत्तचित्ता वि
॥ २२३३ ॥ अणिययविहारचरियाए, आगयाणं च जइ न खेत्तम्मि । वसहीलाभो जायइ, जईण ता कह ठिती तत्थ ॥ २२३४॥ ठिइमऽन्तरेण तक्खेत्तजा य, कह उभयलोगसंभविणो । समणाण गिहत्थाण य, पत्तेयं संभवंति गुणा ॥ २२३५॥ तत्थ इहलोइया संजयाण, असणाऽऽइलाभपभिईया । परलोयसंभवा पुण, संजमपरिपालणाऽऽईया
॥ २२३६॥ गिहीण उ इहभविया पुण, मुणिसंगाउ कुसंगचागाई । परभविया पुण सद्धम्म-सवणपमुहा गुणाऽणेगे ॥ २२३७॥ तह ते सयं न गेहं, कुणन्ति न य कारविति अण्णेहिं । अणुमण्णंति वि नो पर-कयं पि मणवयणकाएहिं ॥ २२३८॥ जम्हा न सुहुमबायर-छज्जीवनिकायहणणविरहेण । जायइ गिहं कुडीरग-मेत्तं पि अओ च्चिय पवुत्तं ॥ २२३९॥ अविकत्तिऊण जीवे, कत्तो घरसरणगुत्तिसंठप्पं । अवि कप्पिऊण तं तह, पडिओ अस्संजयाण पहे
॥ २२४०॥ अण्णं चजइ तरखरपुरस्सर-मऽणेगजणसगरुसंघपच्चक्खं । चईय गिहं च करेमि, भन्ते ! सामाइयं इण्डिं
।। २२४१॥ सव्वं पि हु सावज्ज, जोगं पच्चक्खिमो उ जाजीवं । तिविहं तिविहेणं ति, महापइण्णा कया एसा
॥ २२४२॥ ता कह सव्वंगेहिं, छज्जीवनिकायरक्खणेक्कपरं। सकयपइण्णं मोत्तुं, कुणंति मुणिणो गिहाऽऽइ सयं ॥ २२४३॥